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धनपाल : व्यक्तित्व एवं कृतित्व है। समरकेतु ने नीतिशास्त्र का अध्ययन किया था।" षड्गुणों (सन्धि, विग्रह, यान, आसन, द्वैधीभाव व मन्त्र) का वर्णन प्राप्त होता है।
धनपाल ने साहित्य, संगीत, चित्रकला तथा गणित आदि के ज्ञान का प्रयोग वर्णन को प्रभावशाली बनाने में किया है। इन विद्याओं से संबंधित अनेक उद्धरण तिलकमञ्जरी में प्राप्त होते हैं।
धनपाल ने दर्शनशास्त्र का भी सम्यक् अध्ययन किया था। इन्होंने सांख्य, वैशेषिक, योग, वेदान्त, बौद्ध आदि दर्शनों का अध्ययन किया था। तिलकमञ्जरी में न्यायदर्शन “ तथा प्रमाणों का वर्णन किया गया है। वैशेषिक दर्शन के पदार्थ 'द्रव्य' का उल्लेख प्राप्त होता है। सांख्य के पुरुष और प्रकृति का भी वर्णन किया गया है। 'योग' शब्द का प्रयोग मिलता है। बौद्ध दर्शन का वर्णन भी किया है।”
उपर्युक्त विवरण से ज्ञात होता है कि धनपाल के पास न केवल काव्य करने की स्वाभाविक शक्ति थी अपितु मम्मटाचार्य सम्मत लोक व्यवहार, शास्त्र, दर्शन, कला ग्रंथों व महाकाव्यों के अध्ययन से उत्पन्न व्युत्पत्ति भी थी। धनपाल का कृतित्व
धनपाल अपने समय के उच्च कोटि के विद्वान् थे। वे न केवल संस्कृत अपितु प्राकृत तथा अपभ्रंश के भी विद्वान् थे। उन्होंने संस्कृत, प्राकृत तथा अपभ्रंश
41. अधीतनीतिविद्यामभ्यस्तनिरवद्यधनुर्वेदम् - वही, पृ. 114 42. षाडण्यप्रयोगचतुरः चतसृष्वपि विद्यासु लब्ध प्रकर्षः - वही, पृ. 13 43. वही, पृ. 70, 71, 229, 227, 24, 177, 79, 162, 166 44. न्यायदर्शनानुरागिभि न रौद्रैः - वही, पृ. 10 45. (क) विधिनिरूपितावद्यप्रमाणाम् सुकविवाचमिव - वही, पृ. 24
(ख) प्रमाणविद्भिरप्यप्रमाणविद्यैरधीतनीतिभिः - वही, पृ. 10 46. वैशेषिकमते द्रव्यस्य प्राधान्यं गुणानामुपसर्जनभावो बभूव - वही, पृ. 15 47. दर्शनादेव चासौ जन्मसहभुवं पुमानिव सांख्यपरिकल्पितः प्रकृतिममुञ्चन्निसर्गधीरोऽपि
सागर इव - वही, पृ. 278 48. लब्धहृदयप्रवेशमहोत्सवाभिरप्रयुक्तयोगाभिः - वही, पृ. १
यस्य दोष्णि स्फुरद्धेतौ प्रतीये विबुधैध्रुवः।। बौद्धतर्क इवार्थानां नाशो राज्ञां निरन्वयः।। - वही, पृ. 16
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