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तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य
तिलकमञ्जरी के अध्ययन से ज्ञात होता है कि धनपाल ने वेद-वेदाङ्गों, तथा स्मृतियों का गहन अध्ययन किया था। उन्हें पौराणिक कथाओं, नीति शास्त्र, साहित्य, संगीत, सामुद्रिक शास्त्र, चित्रकला, गणित आदि का सम्यक् ज्ञान था।
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तिलकमञ्जरी में वेद के लिए 'त्रयी शब्द का प्रयोग किया गया है । 'त्रयी' शब्द का प्रयोग ऋक्वेद, सामवेद तथा यजुर्वेद के लिए किया जाता है । पुरोहित द्वारा अप्रतिरथ मन्त्रों के उच्चारण का उल्लेख मिलता है। 34 सामवेद के सामस्वरों का भी वर्णन किया गया है।” धनपाल ने वेद के लिए श्रुति शब्द का प्रयोग करते हुए कहा है - " पुत्रहीन मनुष्य पुम् नामक नरक में जाता है।
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ज्योतिष में प्रयुक्त होने वाले पारिभाषिक शब्दों यथा मुहूर्त, तिथि, वार, करण, लग्न होरा आदि का वर्णन अनेक स्थलों पर प्राप्त होता है। 38
तिलकमञ्जरी पौराणिक कथाओं का भण्डार है। धनपाल ने तिलकमञ्जरी में अनेक स्थलों पर पौराणिक उद्धरणों का उल्लेख किया है। रामायण, महाभारत तथा पुराणों से देवी देवताओं, ऋषि-मुनियों, राजाओं, अप्सराओं, राक्षसों आदि से संबंधित अनेक कथाओं का वर्णन प्राप्त होता है। सम्पूर्ण तिलकमञ्जरी में स्थान-स्थान पर इन्द्र ऐरावत, कुबेर, वरुण, कामदेव, रति, अर्जुन, पाराशर, परशुराम, नल, यम, राम, लक्ष्मी, सुग्रीव, रावण, त्रिजटा, सुग्रीव, विष्णु, विश्वकर्मा, शेषनाग, समुद्रमन्थन, शिव व अन्य अनेक नामों व उनसे सम्बन्धित कथाओं की ओर संकेत किया गया है। धनपाल धर्मशास्त्र व नीतिशास्त्र के भी ज्ञाता थे। ऋषि ऋण देव ऋण तथा पितृ ऋण व त्रिवर्ग" का उल्लेख प्राप्त होता
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33.
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सवनराजिभिः सामस्वरैरिव - वही, पृ. 11
36.
आत्मानं त्रायस्व पुंनाम्नो नरकात् इति सोत्प्रासं शासितस्येव गुरुकृतेन श्रुतिधर्मेण - वही, पृ. 21 प्रयाणशुद्धिमिव प्रष्टुमुपससर्प परिणतज्योतिषम् - वही, पृ. 197
37.
38. पूर्णेसु च क्रमेण किंचित्सातिरेकेषु नवसु मासेषु सारतिथिवारकरणाश्रितेऽतिश्रेयस्यहनि पुण्ये मुहूर्ते यथास्वमुच्चस्थानस्थितैः कौतुकादिव शुभग्रहैरवलोकिते विशुद्ध लग्ने होरायामग्रत एव जातेन ...... । वही, पृ. 75-76
पितृणामपि गच्छ इति याचितप्रसूतेरिव प्रादुर्भूतधर्मवासनातया संनिहितैर्देवर्षिभिः-ति. म., पृ. 20
अनयास्माकमविकला त्रिवर्गसंपत्ति: - वही, पृ. 28
40.
त्रयीमिव महुनिसहस्रोपासित चरणां विन्ध्यगिरिमेखलामिव अक्षमालोपशोभिताम् - ति. म., पृ. 24 राजतपूर्णकुम्भमप्रतिरथाध्ययन ध्वनिमुखरेण - वही, पृ. 115