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धनपाल : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
इन बाह्य प्रमाणों के आधार पर धनपाल की अन्तिम समय सीमा ग्याहरवीं शती का पूर्वार्द्ध निश्चित की जा सकती है। पाइयलच्छीनाममाला धनपाल की प्रथम रचना प्रतीत होती है क्योंकि इसके मङ्गलाचरण में धनपाल ने ब्रह्मा को नमस्कार किया है। यदि वे जैन धर्म में दीक्षित होते तो निश्चित ही जिनदेव को प्रणाम करते। पाइयलच्छीनाममाला का समय 972 ई. है । धनपाल ने 'सत्यपुरीय महावीर उत्साह' में महमूद गजनवी द्वारा सोमनाथ आदि मन्दिरों को नष्ट किये जाने का उल्लेख किया है।" महमूद गजनवी ने 1026 ई. में सोमनाथ के मन्दिरों को नष्ट किया था। इससे इस रचना का समय 1026 ई. के बाद का निश्चित होता है।
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उपलब्ध अन्तः व बाह्य प्रमाणों के सम्यक् पर्यालोचन से धनपाल का समय ई. 960 से 1030 के मध्य निश्चित किया जा सकता है।
धनपाल की प्रतिभा
कवि में काव्य करने की शक्ति जन्म से ही होती है। कवित्व शक्ति के बिना काव्य नहीं बनता और यदि बनता है तो उपहसनीय होता है।" मम्मट ने कवि की स्वाभाविक काव्य करने की शक्ति, लोक व्यवहार से उत्पन्न अनुभव, छन्द-व्याकरण-वेद-पुराण - कला - कोश- अर्थशास्त्र, कालिदासादि महाकवियों के काव्य के पर्यालोचन से उत्पन्न व्युत्पत्ति तथा काव्य मर्म को जानने वाले गुरु की शिक्षा के अनुसार अभ्यास के समष्टि रूप को काव्य सृष्टि का कारण कहा है । "
धनपाल की प्रतिभा का ज्ञान तिलकमञ्जरी के अध्ययन से ही हो जाता है। धनपाल ने अपने पाण्डित्य के बल पर ही राजा भोज की सभा में सर्वोच्च स्थान को प्राप्त किया था।
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मंजेविणु सिरिमालदेसु अनुअणहिलवाडउं चड्डावलि सोरट्ठ भग्गु पुणु दउलवाडउं ।
सोमेसरू सोतेहि भग्गु जणमण आणंदणुं
भग्गु न सिरि सच्चडरिवीरू सिद्धत्थह नंदजुं । । - सत्यपुरीय महावीर उत्साह, पद्य 3 शक्तिः कवित्वबीजरूपः संस्कारविशेषः, यां विना काव्यं न प्रसरेत्, प्रसृतं वा उपहसनीयं
स्यात् । - मम्मट; का. प्र., पृ. 17
शक्तिर्निपुणता लोकशास्त्रकाव्याद्यवेक्षणात्।
काव्यज्ञशिक्षयाभ्यास इति हेतुस्तदुद्भवे । । - वही, 1/3