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तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य रचना काल वि. सं. 1361” तथा प्रभावकचरित का रचनाकाल वि. सं. 1334 है। इन ग्रन्थों में धनपाल का वर्णन होने से यह सिद्ध है कि धनपाल का समय इससे पहले का होगा।
(2) नाथूराम प्रेमी के अनुसार धनपाल परमार वंश के राजा सीयक से लेकर भोज के समय तक जीवित रहे।" धनपाल ने भी तिलकमञ्जरी में सीयकराज का उल्लेख किया है। राजा सीयक वही मालवनरेश हैं, जिन्होंने मान्यखेट पर वि. सं. 1029 में आक्रमण किया था। इससे राजा सीयक का समय ई. सं. दशम शती का उत्तरार्द्ध निश्चित होता है तथा यही धनपाल का स्थिति काल भी निश्चित होता है।
(3) हेमचन्द्राचार्य ने तिलकमञ्जरी की भूमिका के एक पद्य 'प्राज्यप्रभावः प्रभवो ....' का उल्लेख 'काव्यानुशासन4 में किया है। हेमचन्द्र का समय ई. सं. 1088 से लेकर बाहरवीं शती के उत्तरार्द्ध तक है।
(4) अणहिल्लपुर निवासी पल्लीपाल धनपाल ने तिलकमञ्जरी कथा को आधार बनाकर वि सं. 1261 में 1200 पद्यों से युक्त तिलकमञ्जरीसार की रचना की।
(5) तिलकमञ्जरी के टिप्पणकार श्री शान्तिसूरी का समय द्वादश शती का पूर्वार्द्ध है।" ___(6) नमिसाधु ने रुद्रट के काव्यालङ्कार पर लिखि अपनी टीका में तिलकमञ्जरी का उल्लेख किया है। नमिसाधु ने इस टीका की रचना 1068 ई. में की थी। इससे भी धनपाल का समय ई. 1068 से पूर्व का होना निश्चित हो जाता है।
19. चौधरी, गुलाबचन्द्र; जैन साहित्य का वृहद् इतिहास, पृ. 426 . 20. वही, पृ. 205 21. प्रेमी, नाथूराम; जैन साहित्य और इतिहास, पृ. 409 22. ति. म., भूमिका, पद्य 41 23. धनपाल, पाइयलच्छीनाममाला, गाथा 276 24. हेमचन्द्र; काव्यानुशासन, अध्याय 5, पृ. 328 25. हेमचन्द्र; अभिधानचिन्तामणि, भूमिका, पृ. 13-18
पल्लीपाल धनपाल; तिलकमञ्जरीसार, अहमदाबाद, 1969 27. तिलकमञ्जरी; विजयलावण्यसूरीश्वर कृत पराग टीका सहित, भाग-I, पृ. 19
___New Catalogus catalogorum, Vol. 8 Ed. K. Kunjani Raja, 29. Kane, P.V.; History of Sanskrit poetics, p. 155