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धनपाल : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
होने पर मालवनरेश ने मान्यखेट पर आक्रमण करके लूटा, तब धारा नगरी में निवास करने वाले, मैंने अपनी कनिष्ट भगिनी सुन्दरी के लिए इसकी रचना की।"
(4) धनपाल ने अपने आश्रयदाता राजाओं में मुञ्जराज व भोजराज का वर्णन किया है। मुञ्जराज ने धनपाल के पाण्डित्य से प्रभावित होकर उसे 'सरस्वती' विरुद से सम्मानित किया था।" धनपाल ने तिलकमञ्जरी की भूमिका में भोजराज की प्रशंसा करते हुए कहा है कि समस्त वाङ्मयविद होते हुए भी भोज का जैन सिद्धान्तों में कुतुहल उत्पन्न होने पर, मैनें अद्भुत रस युक्त इस कथा की रचना की। इतिहासकार भोज का समय 1010 से 1055 ई. के मध्य मानते हैं।
उपर्युक्त विवरणों से धनपाल का समय 10वी. शती का उत्तरार्द्ध निश्चित होता जाता है। धनपाल के समय की यह प्रारम्भिक सीमा है। बाह्य प्रमाणों के आधार पर धनपाल की अन्तिम समय सीमा निर्धारित की जा सकती है।
बाह्य प्रमाण :
धनपाल के जीवन एवं समय से सम्बन्धित अनेक बाह्य प्रमाण भी प्राप्त होते
(1) प्रबन्धचिन्तामणि" व प्रभावकचरित" नामक जैन ग्रन्थों से हमें धनपाल के जीवन व समय की विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। प्रबन्धचिन्तामणि का
14. विक्कमकालस्स गए अउणतीसुत्तरे सहस्सम्मि।
मालवनरिंदधाडीए लूडिए मन्नखेडम्मि।। धारानयरीए परिट्ठिएण मग्गे ठिआए अणवज्जे। कज्जे कणिट्ठबहिणीए 'सुन्दरी' नामधिज्जाए।।
पाइयलच्छीनाममाला, गाथा 276-277 15. अक्षुण्णोऽपि विविक्तसूक्तिरचने यः सर्वविद्याब्धिना,
श्री मुञ्जेन सरस्वतीति सदसि क्षोणीभृता व्याहृतः।। ति. म., भूमिका, पद्य 53 16. निःशेषवाङ्मयविदोऽपि जिनागमोक्ताः श्रोतुं कथाः समुपजातकुतूहलस्य।
तस्यावदातचरितस्य विनोदहेतो राज्ञः स्फुटाद्भुतरसा रचिता कथेयम।। वही,पद्य 50 17. मेरूतुंग; प्रबन्धचिन्तामणि, पृ. 36-42 18. प्रभाचन्द्र; प्रभावकचरित, पृ. 138-151