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________________ तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य धनपाल श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अनुयायी थे ।" धनपाल ने जैन धर्म की दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात ऋषभदेव की स्तुति में 50 पद्यों में 'ऋषभपंचाशिका' तथा महावीर की स्तुति में 30 पद्यों से युक्त 'वीरस्तुति' की रचना की। उन्होंने ऋषभदेव का मन्दिर बनवाया तथा अपने गुरु महेन्द्रसूरि द्वारा ऋषभदेव की प्रतिमा का स्थापना करवाई। उन्होंने अनेक तीर्थो की भी यात्रा की। इस प्रकार उपर्युक्त प्रबन्धों व रचनाओं के पर्यालोचन से हमें धनपाल के जीवन से संबंधित विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। धनपाल का समय धनपाल के समय के विषय में विद्वानों में अधिक मतभेद नहीं है। धनपाल के विषय में अनेक अन्तः व बाह्य प्रमाण उपलब्ध होते हैं, जिनसे धनपाल के समय का ठीक अनुमान किया जा सकता है। अन्त: प्रमाण : (1) धनपाल ने तिलकमञ्जरी के भूमिका भाग में बाल्मीकि, व्यास, कालिदास, माघ, भारवि, भवभूति, बाणभट्ट " प्रभृति कवियों का उल्लेख किया है। बाण राजा हर्षवर्धन के सभापण्डित थे। हर्षवर्धन का समय 7 वी. सदी का है। धनपाल का समय इनके पश्चात् ही हो सकता है। 23 (2) तिलकमञ्जरी की भूमिका में धनपाल ने एक पद्य में कवि यायावर ( राजशेखर) की वाणी को मुनिवृत्ति के समान कहा है।" राजशेखर का समय दशम शती का पूवार्द्ध है। अतः धनपाल का समय इसके पश्चात् ही हो सकता है। (3) धनपाल की एक अन्य रचना पाइयलच्छीनाममाला में धनपाल के काल के विषय में एक स्पष्ट संकेत प्राप्त होता है - विक्रम के 1029 वर्ष व्यतीत प्रेमी, नाथूराम; जैन साहित्य और इतिहास, पृ. 410-411 केवलोऽपि स्फुरन् बाणः करोति विमदान् कविन्। किं पुन: क्लृप्तसन्धानपुलिन्ध्रकृतसन्निधिः । - ति म., भूमिका, पद्य 26 13. समाधिगुणशालिन्यः प्रसन्नपरिपक्त्रिमाः । यायावरकवेर्वाचो मुनीनामिव वृतयः । । -वही;, भूमिका, पद्य 33 11. 12.
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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