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________________ 22 धनपाल : व्यक्तित्व एवं कृतित्व धनपाल ने अपने अनुज के इस कृत्य से रुष्ट होकर राजा भोज के द्वारा राज्य में जैन मुनियों के प्रवेश पर बारह वर्षों तक के लिए रोक लगवा दी। इस पर धारा नगरी के उपासकों के प्रार्थना करने पर तथा गुरुपुरुषों के बुलाये जाने पर सभी जैन सिद्धान्तों में पारङ्गत मुनि शोभन ने अपने गुरु से आज्ञा प्राप्त कर धारानगरी में प्रवेश किया। पालकी में जाते हुए धनपाल ने अपने भ्राता शोभन मुनि को धारा नगरी में प्रवेश करते हुए देखकर उन्हें उपलक्षित कर उपहास करते हुए कहा - "गर्दभदन्त भदन्त नमस्ते।" इस पर शोभन मुनि ने उन्हें आर्शीवाद देते हुए कहा - "कपिवृषणास्य वयस्य सुखं ते।" (हे कपियों में श्रेष्ठ आपको सुख हो)। उपहास में नमस्ते कहे जाने पर भी आशीर्वाद देकर शोभन मुनि ने वचनचातुर्य से धनपाल के हृदय को जीत लिया। धनपाल ने पूछा - 'आप किसके अतिथि हैं', शोभन मुनि ने कहा कि हम आपके अतिथि हैं। तब धनपाल ने मीठे वचनों में उन्हें भोजन का निमन्त्रण दिया। जैन मुनि प्रासुक (अनुद्दिष्ट) आहार भोजी होते हैं, अतः उन्होंने इसका निषेध किया। जैन धर्म में जीवरक्षा की प्रधानता है। वे इस विषय में अत्यन्त सजग रहते हैं कि कहीं अनजाने में भी उनसे किसी जीव की हत्या न हो जाए। भिक्षाचर्या के लिए दो जैन मुनियों के घर आने पर धनपाल की पत्नी ने उन्हें दो दिन का दही दिया। मुनि द्वारा यह पूछा जाने पर कि यह दही कितने दिन का है, धनपाल ने उपहास करते हुए कहा - क्या इसमें कीड़े हैं?तब मुनि ने कहा कि हाँ, इसमें कीड़े है तथा उन्होंने उसे कीड़े दिखाए। इससे धनपाल को जिन धर्म में जीवदयाप्राधान्य व जीवोत्पत्ति के वैदग्ध्य आदि विशिष्ट सिद्धान्तों का ज्ञान हुआ। इसी से प्रभावित होकर धनपाल ने जैन धर्म में दीक्षित होना स्वीकार कर लिया। धनपाल के जीवन एवं दीक्षा ग्रहण से सम्बन्धित विवरण प्रभावकचरितान्तर्गत 'महेन्द्रसूरिचरित" में भी मिलता है। प्रभावकचरित व प्रबन्धचिन्तामणि के अतिरिक्त तिलकमञ्जरी अवतरणिका, संघतिलकसूरिकृत 'सम्यक्त्व सप्रतिका', श्रीरत्नमंदिरगणिकृत 'भोजप्रबन्ध', श्री इन्द्रहंसगणिकृत 'उपदेशकल्पवल्ली', श्री हेमविजयगणिकृत 'कथारत्नाकर', श्री जिनलाभसूरिकृत 'उपदेशप्रासाद', जैन साहित्य शोधक अंक तथा जैन साहित्य इतिहासादि में भी धनपाल से सम्बन्धित विवरण प्राप्त होता है।" 9. प्रभाचन्द्र; प्रभावकचरितान्तर्गत महेन्द्रसूरिचरित, पृ. 138-151 10. तिलकमञ्जरी; विजयलावण्यसूरीश्वर कृत पराग टीका सहित, प्रस्तावना, पृ. 27
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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