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तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य
पाश्चात्य दार्शनिक हीगल ने सौन्दर्य को कलाओं का दर्शन कहा है। ये कलाएं पांच हैं - वास्तु, मूर्ति, चित्र संगीत और काव्य। ये समस्त कलाएं सौन्दर्य की विभिन्न माध्यमों से की गई अभिव्यक्ति होती है, दूसरे शब्दों में वे सौन्दर्य का मूर्त रूप हैं। वात्स्यायन ने सौन्दर्य के मूल को पहचान कर कलाओं का अति सूक्ष्म विभाजन किया है। उन्होंने कामसूत्र में कलाओं की संख्या 64 बताई है। भारतीय परम्परा में सौन्दर्यतत्त्व कलाओं से विच्छिन्न कोई अलग तत्त्व नहीं है। जो सुन्दर नहीं है, वह कला ही नहीं है। सौन्दर्य के क्षेत्र के विषय में डॉ. नगेन्द्र का मत है - प्रकृति सौन्दर्य के प्रत्यक्ष भावन और चिंतन से कला का जन्म होता है और कलानिबद्ध सौन्दर्य के भावन और चिंतन से सौन्दर्यशास्त्र का। वस्तुतः सौन्दर्य का क्षेत्र अति विस्तृत है। विभिन्न विद्वान् अपने विवेकानुसार इसका क्षेत्र निर्धारण करने का प्रयत्न करते हैं। परन्तु सौन्दर्य विषयक अधिकतर आधारग्रन्थ इस मत को स्पष्ट करते हैं कि सौन्दर्य के क्षेत्र में कलागत सौन्दर्य आता है। जहां प्रकृतिगत सौन्दर्य की विवेचना की गई हैं। वहां कलागत सौन्दर्य को उद्दीपक व प्रेरणा स्रोत माना गया है। काव्य सौन्दर्य उपर्युक्त विवेचना से यह स्पष्ट है कि सौन्दर्य का क्षेत्र अत्यधिक व्यापक है। यह काव्येतर कलाओं में भी प्रस्तुत है। काव्य सौन्दर्य का अध्ययन क्षेत्र काव्य तथा उसके तत्त्वों के अध्ययन तक सीमित है। काव्यकला को सभी कलाओं में सर्वोत्तम माना गया है। कवि को जैसा रुचिकर लगता है, उसी प्रकार से काव्य जगत् परिवर्तित हो जाता है।” मम्मट भी कवि की सृष्टि को बह्मा की सृष्टि से उत्कृष्ट बताते हुए कहते हैं-कवि की सृष्टि नियति के बंधनों से रहित, केवल आनन्दस्वरूपा, किसी अन्य के नियन्त्रण से रहित तथा नौ रसों से रुचिर है। काव्य का प्रमुख प्रयोजन सामाजिक को आनन्द प्रदान करना है। सामाजिक इस मीमांसा में नहीं पड़ता कि उसे आनन्दानुभूति (सौन्दर्यानुभूति) काव्य के किस तत्त्व से हुई है। इसकी मीमांसा करना तो काव्यज्ञों तथा काव्याचार्यों का कार्य है। सौन्दर्य कैसे उत्पन्न होता है। तथा सौन्दर्य का वह कौन सा नियामक तत्त्व है
57. अपारे काव्येसंसारे कविरेव प्रजापतिः।
यथा वै रोचते विश्वं तथेदं परिवर्तते।। अ. पु., पृ. 339/10 58. नियतिकृतनियमरहितां ह्लादैकमयीमनन्यपरतन्त्राम्।
नवरसरुचिरां निर्मितिमादधती भारती कवेर्जयति। का. प्र., 1/1