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________________ 14 तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य में अलंकारतत्व रहता है और न ध्वनि में ध्वनितत्त्व। आचार्यों ने काव्यता की गवेषणा करते हुए किसी न किसी रूप में सौन्दर्य की विवेचना की है। संस्कृत काव्याचार्यों में वामन ने सर्वप्रथम 'सौन्दर्य' का परिभाषा परक अर्थ किया है - काव्यं ग्राह्यमलङ्कारात्। सौन्दर्यमलङ्कारः।” अर्थात् काव्य अलङ्कार से ग्राह्य होता है, सौन्दर्य ही अलङ्कार है। इस प्रकार वामन ने सौन्दर्य को काव्य का प्राण माना है। जिसमें सौन्दर्य नहीं वह काव्य ही नहीं है। 'अलक्रियते अनने इति अलङ्कारः' ऐसी व्युत्पत्ति करने पर अलंकार का अर्थ होता है वे सभी तत्व जो काव्य को अलङ्कत करते हैं, अलङ्कार कहलाते हैं। इससे काव्य के सभी तत्त्वों का अन्तर्भाव अलङ्कार में हो जाता है। वामन ने सौन्दर्यमलङ्कारः कहकर अलङ्कार को काव्य का सर्वस्व माना है। यदि वामन को अलङ्कार शास्त्र का कोई अन्य नाम अभिप्रेत होता, तो मैं समझता हूं वह निश्चित ही सौन्दर्यशास्त्र होता। पण्डितराज जगन्नाथ ने अपने काव्य लक्षण में सौन्दर्य के उचित पर्याय रमणीय का प्रयोग किया है - रमणीयार्थ-प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्। अर्थात् रमणीय अर्थ का प्रतिपादन करने वाला शब्द काव्य है। यह रमणीय अर्थ सौन्दर्य ही है। ध्वनिकार आनन्दवर्धन ने भी काव्य सौन्दर्य को प्रतीयमान अर्थ (ध्वनि) की संज्ञा से अभिहित किया है। उनके अनुसार जिस प्रकार अङ्गना में लावण्य (सौन्दर्य) उसके प्रसिद्ध अङ्गों से भिन्न भासता है। उसी प्रकार प्रतीयमान अर्थ महाकवियों की वाणी में वाच्यार्थ से अलग ही भासित होता है प्रतीयमानं पुनरन्यदेव वस्त्वस्ति वाणीषु महाकवीनाम्। यत्तत्प्रसिद्धावयवातिरक्तिं विभाति लावण्यमिवाङ्गनासु।" मम्मट भी इसका समर्थन करते हुए कहते हैं कि जहां व्यंग्यार्थ वाच्यार्थ की उपेक्षा अधिक अधिक सुन्दर और चमत्कारयुक्त होता है उसे विद्वान् ध्वनि कहते हैं। वक्रोक्ति सम्प्रदाय के संस्थापक आचार्य कुन्तक का मत है कि काव्य सौन्दर्य कथन की विलक्षणता में होता है। कुन्तक सौन्दर्य को कवि वाणी का 48. भारतीय साहित्यशास्त्र, पृ. 2 का. सू. वृ., 1/1/1,2 50. र. गं. ध., 1/1 ध्वन्या. 1/4 52. इदमुत्तममतिशयिनि व्यंग्ये वाच्याद् ध्वनिर्बुधैः कथितः। का. प्र., सू.2
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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