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काव्य सौन्दर्य
होता है। रामायण में यद्यपि प्रकृति सौन्दर्य की प्रधानता है तथापि संगीत, नृत्य, मूर्ति, चित्र आदि कलाओं का सौन्दर्य पदे पदे परिलक्षित होता है। काव्य के सभी तत्वों का साङ्गोपाङ्ग वर्णन होने के कारण काव्याचार्य सदैव इसमें से उदाहरणों को उद्धृत करते रहते हैं। ध्वनिकार आनन्दवर्धन भी अपने ध्वनि सिद्धान्त को परिपुष्ट करने के लिए रामायण का ही अवलम्बन करते हैं -
काव्यस्यात्मा स एवार्थस्तथा आदिकवेः पुरा । क्रौंचद्वन्द्ववियोगोत्थः शोकः श्लोकत्वमागतः ॥ s
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कवि शिरोमणि कालिदास के काव्यों में भी सर्वत्र सौन्दर्य का दर्शन होता है। कालिदास वल्कलवस्त्र धारिणी शकुन्तला के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं कि प्रकृत्या सुन्दर आकृति वाले शरीर कुछ भी धारण कर ले, वे उनके अलङ्करण बन जाते हैं क्योंकि सहज सौन्दर्य असुन्दर को भी सुन्दर बना देता है ।" डॉ. आनन्दप्रकाश दीक्षित कहते हैं कि कालिदास सौन्दर्य को केवल वस्तु का गुण नहीं मानतें, इसके विपरीत वे उसमें निहित अन्तरीण सौन्दर्य-शक्ति का दर्शन करते हैं। यह सौन्दर्य प्रकृतिदत्त ही नहीं है, ईश्वर द्वारा प्रतिष्ठित, आध्यात्मिक और अभौतिक भी है। कुमारसम्भव में पार्वती का शब्द चित्र बनाते हुए उन्होंने इसी सत्य का उद्घाटन किया है। 7
संस्कृत काव्याचार्यों ने भी सौन्दर्य की विभिन्न रूपों में विवेचना की है। सत्य का प्रमुख प्रयोजन आनन्द प्रदान करना है। पाश्चात्य चिन्तक सौन्दर्य को आनन्द का मूल कारण मानते हैं। भारतीय काव्यज्ञ भी काव्य के आत्म तत्व 'सौन्दर्य' के महत्व को भली भांति जानते थे इसलिए उन्होंने काव्य में सौन्दर्य के स्वरूप और उसके मूल तत्वों पर अति सूक्ष्मता से विचार किया है। बलदेव उपाध्याय कहते हैं-संस्कृताचार्य जानते थे कि सौन्दर्य के अभाव में न तो अंलकार
45. ध्वन्या., 1/5
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सरसिजमनुविद्धं शैलवेनापि रम्यं मलिनमपि हिमांशोर्लक्ष्मीलक्ष्मीं तनोति ।
इयमधिकमनोज्ञा वल्कलेनापि तन्वी, किमिव हि मधूराणां मण्डनं नाकृतीनाम्।। अभि.
शा. 1/18
(क) सौन्दर्य तत्त्व, दासगुप्त, भूमिका, पृ.40
(ख) सर्वोपमाद्रव्यसमुच्चयेन यथा प्रदेशं विनिवेशितेन ।
सा निर्मिता विश्वसृजा प्रयत्नादेकस्थसौन्दर्यदिदृक्षयेव । कुमार., 1/49