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________________ तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य रमणीय, आदि पद भी सुन्दर के वाचक है। डॉ. फतह सिंह का मत है कि सौन्दर्य विषयक शोध कार्यों से यह स्पष्ट है कि भारतीय काव्य चिन्तन में सौन्दर्य तत्व का अस्तित्व उतना ही प्राचीन है जितना ऋग्वेद। ऋग्वेद के अनुसार काव्य में प्रियता, मधुर-मादकता तथा चारुता मुख्य होती हैं। ऋग्वेद में सुन्दर तथा सौन्दर्य वाचक अनेक पर्यायों का प्रयोग मिलता है जैसे - पेशस, अप्सस्, दृश, चारु, रुचिर, भद्र, चित्र, प्रिय, कल्याण, शुभ, श्रिय आदि। डॉ. पाण्डेय कहते हैं कि वैदिक कवि द्रष्टा और ऋषि थे। उनका प्रकृति का प्रत्यक्षीकरण सजीव और सुंदर था।" उषस् आदि सूक्तों में प्रकृति सौन्दर्य का अपूर्व वर्णन किया गया है। प्रकाश रूपी वस्त्र से आवृत उषा पूर्व दिशा में उदित होकर अपने सौन्दर्य को अनावृत करती है। वह निशा के अंधकार को दूर कर अपने प्रकाश-सौन्दर्य से जगत् को मोहित करती है। इसी प्रकार ऋग्वेद के सोम, अग्नि, विष्णु, उषा, आदि सूक्तों में सौन्दर्य का विविध रूपों वर्णन मिलता है। इससे यह ज्ञात होता है कि ऋग्वेद काल से ही वैदिक ऋषि सौन्दर्य विषयक अत्यन्त सूक्ष्म चिन्तन किया करते थे। उपनिषदों में भी सौन्दर्य विषयक चिंतन स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। उपनिषदों में सौन्दर्य को विशुद्ध आध्यात्मिक दृष्टि से देखा गया है। यहाँ प्रकाश रूप परम तत्व को ही सौन्दर्य की संज्ञा दी गई है। उपनिषदों में सौन्दर्य और सत्य को समरूप कहा गया है, जो शाश्वत सत्य है। इनमें सौन्दर्य का भौतिक पक्ष उपेक्षित रहा है। .. आदिकवि वाल्मीकि कृत रामायण में भी सुन्दर के लिए रम्य, शोभन, रमणीय, चारु आदि पदों का प्रयोग प्रचुरता से मिलता है। रामायण के सात काण्डों में से एक काण्ड का नाम ही सुन्दर काण्ड' है। आचार्य बलदेव उपाध्याय का मत है "रामायण बाल्मीकि की अमृतमय वाणी में सौन्दर्य सृष्टि का चरम उत्कर्ष है।"" रामायण में प्रकृति, मानव व कलागत सौन्दर्य अपने चरम रूप में दृष्टिगोचर 40. भारतीय सौन्दर्य शास्त्र की भूमिका, पृ. 73 41. स्वतन्त्रकलाशास्त्र ; कान्तिचन्द्र पाण्डेय, पृ. 10-11 42. एषा दिवो दुहिता प्रत्यदर्शि ज्योतिर्वसाना समना पुरस्तात्। उषस्सूक्त, वैदिक संग्रह, पृ. 54 43. सौन्दर्य, राजेन्द्र बाजपेयी, पृ. 144 44. संस्कृत साहित्य का इतिहास, आ. बलदेव उपाध्याय, पृ. 31
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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