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काव्य सौन्दर्य
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प्लेटो का मत है- If anything is beautiful, it is beautiful for no other reason that it pertakes of absolute beauty. " प्लेटो प्रेममार्ग को सौन्दर्यानुभूति का साधन मानता है। यह स्थापित सत्य है कि व्यक्ति जिससे प्रेम करता है, उसे वह संसार में सबसे सुन्दर लगता है। लैला कृष्णवर्णा थी परन्तु मजनूँ को वह संसार की सभी स्त्रियों से अधिक सुन्दर लगती थी क्योंकि मजनूँ उसे प्रेम करता था।
प्लेटो ने सुंदर को सत्य और शिव से अभिन्न माना है। उसके अनुसार जगत् सत्य का प्रतिबिंब है अतः अवास्तविक है। इसी कारण जगत् में व्यक्त सौन्दर्य भी अवास्तविक है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में परमात्मा ही सत्य है अतः वह ही परम सौन्दर्य है। परम सौन्दर्य का निवास मानव का अन्त:करण है । "
अरस्तू : सौन्दर्य के विषय में अरस्तू का दृष्टिकोण अपने गुरु प्लेटो से कुछ भिन्न है। प्लेटो का दृष्टिकोण आध्यात्मिक था परन्तु अरस्तू का दृष्टिकोण यथार्थवादी था। उसके अनुसार सौन्दर्य का दर्शन नेत्रों से होता है अतः शुभ या कल्याणकारी से उसका कोई संबंध नही है। सौन्दर्य के प्रति मानव सदा से संवेदनशील रहा है। प्राकृतिक सौन्दर्य से उत्प्रेरित होकर वह सुन्दर कलाकृतियों का सृजन करता आया है। कलात्मक सृजन का जन्म मानव में भावनात्मक अभिव्यक्ति की क्षुधा के कारण होता है। सौन्दर्यात्मक आनन्द भावों से होता है, बौद्धिक स्त्रोत से नहीं। सौन्दर्य केवल बाह्य प्रकृति का अनुकरण न होकर मानव की अन्त: प्रकृति का भी अनुकरण है।" यह सत्य है कि कलाकार प्राकृतिक सौन्दर्य से ही सृजन की प्रेरणा ग्रहण करता है तथापि उसकी कृति उससे श्रेष्ठ होती है क्योंकि कलाकार अपने अन्तःकरण की प्रेरणा व अपनी प्रतिभा से उसमें अनन्त सौन्दर्य का समावेश कर देता है। इसी कारण कलाकार की कृति ब्रह्मा की कृति से श्रेष्ठ मानी जाती है। 24
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प्लोटिनसः प्लोटिनस का मत है कि सौन्दर्य भौतिक पदार्थों में नहीं होता अपितु उन शाश्वत विचारों में निहित है, जिन्हें सांसारिक वस्तुएँ या भौतिक पदार्थ
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सौन्दर्य तत्त्वनिरूपण ; डॉ. नरसिम्हाचारी, पृ. 28
सौन्दर्य, राजेन्द्र बाजपेयी, पृ. 22-28
वही, पृ. 31-34
अपारे काव्यसंसारे कविरेव प्रजापतिः ।
यथा वै रोचते विश्वं तथेदं परिवर्तते ।। अ. पु. 339/10