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तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य
आश्रय देने वाले राजाओं का उल्लेख किया है। यह सब विश्वनाथ के कथा लक्षण के अनुसार पद्य में किया गया है। मुख्य कथा गद्य में निबद्ध की गई है। जिसमें यत्र-तत्र आर्या, वक्त्र और अपवक्त्र छंदों का प्रयोग किया गया है। सौन्दर्य सुन्दरता का भाव ही सौन्दर्य है। सौन्दर्य अनुभूति का विषय है। किसी भी वस्तु या विषय की सुन्दरता मनुष्य के हृदय को प्रभावित करती है। नारी सौन्दर्य, सुन्दर पुष्प, ऊँचे-ऊँचे पर्वत, जंगल में खड़े घने वृक्ष, मनोरम घाटियाँ, घुमड़ते हुए बादल, स्वच्छ नीला आकाश किस के हृदय को हर नहीं लेते। सुन्दर वस्तु में वह आर्कषण होता है कि मनुष्य अपनी सुध-बुध खोकर सौन्दर्य रसास्वादन में तल्लीन हो जाता है। सुन्दरता ऋषि-मुनियों के हृदय में भी काम को प्रवेश करने का अवकाश दे देती है। नारद, विश्वामित्र सदृश महर्षि भी इसके वशीभूत हो गये, तब सामान्य जन की तो क्या कही जाए। ___ सौन्दर्य व्यक्ति सापेक्ष होता है। सौन्दर्य के प्रति प्रत्येक व्यक्ति भिन्न-भिन्न प्रकार से आकर्षित होता है। तथा प्रत्येक व्यक्ति का सौन्दर्य के प्रति अलग दृष्टिकोण होता है। कोई सौन्दर्य को वस्तु में देखता है तो कोई हृदय में। इसी कारण सौन्दर्य के लिए क्रमानुसार अनेक धारणाएँ विकसित हुई। इन मतों व धारणाओं का संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है। पाश्चात्य चिन्तन सौन्दर्य पाश्चात्य दार्शनिकों की समालोचना का प्रमुख व प्रिय विषय रहा है। इसलिए सौन्दर्य विषयक चिन्तन में पाश्चात्य विद्वानों के मतों की एक सुदीर्घ परम्परा दृष्टिगोचर होती है। प्राचीन ग्रीक चिन्तक प्लेटो, अरस्तु प्रभृति विद्वानों से लेकर आधुनिक काल के सौन्दर्य शास्त्री क्रोचे ने सौन्दर्य पर विस्तारपूर्वक अपने मत को प्रस्तुत किये हैं।
__ प्लेटो : प्लेटो का सौन्दर्य विषयक दृष्टिकोण आध्यात्मिक है। वे कहते है कि सौन्दर्य सृष्टि का मूल तत्त्व है और इसका सन्धान करना ही तत्त्व द्रष्टा का चरम लक्ष्य है। वे सौन्दर्य को प्रकाश रूप मानते है जो वस्तुतः चैतन्य रूप है।"
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भारतीय सौन्दर्य शास्त्र की भूमिका, डॉ. नगेन्द्र, पृ. 21