SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ काव्य सौन्दर्य काव्य भेद ध्वनिवादी आचार्यों ने व्यंग्य के आधार पर काव्य के तीन भेद किए है। ध्वनि काव्य, गुणीभूत व्यंग्य काव्य और चित्र काव्य। वाच्यार्थ की अपेक्षा व्यंग्यार्थ के अधिक रमणीय होने पर ध्वनि काव्य होता है। विद्वानों ने इसे उत्तम काव्य कहा है। जहाँ पर वाच्यार्थ व्यंग्यार्थ की अपेक्षा अधिक रमणीय होता है, वहाँ मध्यम काव्य होता है। इसमें व्यंग्यार्थ गौण हो जाता है, इसीलिए इसके गुणीभूत व्यंग्य भी कहते हैं।" चित्र काव्य में व्यंग्यार्थ का अभाव होता है। इसमें अलङ्कारों का प्राधान्य रहता है। यह शब्द चित्र और अर्थ चित्र नामक भेदों से दो प्रकार का होता है। साहित्यदर्पणकार ने स्वरूप भेद के आधार पर अन्य प्रकार से काव्य के दो भेद किये हैं दृश्य काव्य और श्रव्य काव्य।” दृश्य काव्य के दो भेद है- रूपक और उपरूपक। इसी प्रकार श्रव्य काव्य के भी तीन भेद होते है- पद्य, गद्य और चम्पू। छन्दयुक्त रचना पद्य कहलाती है। छन्दमुक्त रचना को गद्य कहते हैं तथा जिसमें गद्य और पद्य दोनों हों, उसे चम्पू कहा जाता है। गद्य को कवियों की कसौटी कहा गया है। गद्य के दो भेद है- कथा तथा आख्यायिका। कथा तथा आख्यायिका दोनों में सरस वस्तु का निबंधन गद्य द्वारा होता है। इनमें कहीं-कहीं आर्यावक्त्र व अपवक्त्र छन्द होते हैं। दोनों में मुख्य भेद यह है कि कथा कवि की काल्पनिक सृष्टि है जबकि आख्यायिका की विषय वस्तु ऐतिहासिक होती है। आख्यायिका की कथावस्तु उच्छवासो या आश्वासों में विभक्त रहती है। जबकि कथा में ऐसा नहीं होता। धनपाल विरचित सहृदय हृदयाह्लादक रचना तिलकमञ्जरी कथा काव्य है। इसका मंगलाचरण नमस्कारात्मक है। धनपाल ने सर्वप्रथम जिनदेव की स्तुति की है। तत्पश्चात् खलादि के चरितों का वर्णन करके अपने पूर्ववर्ती कवियों का उल्लेख किया है। कथा के आरम्भ में भूमिका में ही धनपाल ने अपने वंश तथा 16. इदमुत्तममतिशयिनिव्यंग्ये वाच्याद् ध्वनिर्बुधैः कथितः। का. प्र., सू.2 17. अतादृशी गुणीभूतव्यंग्यं व्यंग्ये तु मध्यमम्। वहीं सू. 3 18. शब्दचित्रं वाच्यचित्रमव्यंग्यं त्ववरं स्मृतम्। वही, सू.4 19. दृश्यश्रव्यत्व भेदेन पुनः काव्यद्विधा मतम्। सा. द., 6/1
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy