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________________ 4 10 शब्द और अर्थ के समन्वय को ही काव्य माना है । " आचार्य कुन्तक काव्य का लक्षण देते हुए कहते हैं- सहृदय हृदयाह्लादक, वक्र (चमत्कारयुक्त) कवि व्यापार से युक्त बंध ( रचना) में विशेष रूप से अवस्थित तथा सहित भाव से युक्त शब्द और अर्थ ( दोनों मिलकर) काव्य होते हैं।" काव्य का काव्यत्व कवि की प्रतिभा व कौशल पर आधारित होता है। जब शब्दार्थ युगल सहित भाव से युक्त होकर कवि के वक्रोक्ति व्यापार युक्त बंध में व्यवस्थित होते हैं, तभी काव्य होता है। 12 क्षेमेन्द्र ने औचित्य को काव्य का प्राण मानते हुए कहा है कि औचित्य रससिद्ध काव्य का स्थिर जीवित है ।" औचित्य रहित काव्य अलङ्कार व गुण होने पर भी निष्प्राण हो जाता है। । मम्मट ने दोष रहित, गुण युक्त सामान्यतः अलङ्कार सहित कहीं-कहीं अलङ्कार रहित शब्दार्थ को काव्य माना है।" उनके अनुसार रस से पूर्ण होने पर भी यदि रचना में अलङ्कार स्फुट न हो, तो भी काव्यत्व की हानि नहीं होती। तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य आचार्य विश्वनाथ रसयुक्त वाक्य को काव्य कहते हैं। " पंडितराज जगन्नाथ ने काव्य का लक्षण करते हुए कहा है कि रमणीय अर्थ को प्रतिपादित करने वाला शब्द ही काव्य है ।" रमणीयता से उनका अभिप्राय आनन्द या लोकोत्तर आह्लाद से है। यहाँ काव्य लक्षणों की व्याख्या करना पिष्टपेषण मात्र ही होगा क्योंकि संस्कृत काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों में इनकी विस्तार से चर्चा हुई है। जिन आचार्यों ने काव्य का लक्षण किया है, उन्होंने शब्द, अर्थ या शब्दार्थ मात्र को ही इसका आधार नहीं बनाया है अपितु इनसे अभिव्यञ्जित विशिष्ट भाव को ही काव्य का लक्षण प्रतिपादित किया है। यह विशिष्ट भाव निश्चित रूप से रसाभिव्यक्ति ही है। 10. 11. 12. 13. 14. 15. ननु शब्दार्थौ काव्यम् । का. ल, 2/1 शब्दार्थौ सहितौ वक्रव्यापारशालिनि । बन्धे व्यवस्थितौ काव्यं तद्विदाह्लादकारिणी।। व. जी. 1/7 औचित्यं रससिद्धस्य स्थिरं काव्यस्य जीवितम् । औ. वि. च., 1/5 तददोषौ शब्दार्थौ सगुणावनलंकृति पुनः क्वापि । का. प्र., 1/1 वाक्यं रसात्मकं काव्यम्। सा. द. 1/3 रमणीयार्थ- प्रतिपादक: शब्द: काव्यम् । र. गं. ध. 1/1
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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