SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 250
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य प्रसत्तिमिव काव्यगुणसंपदाम्, पञ्चमश्रुतिमिव गीतीनाम्, रसोक्तिमिव भणितीनाम्, अधिकमुदभासमानाम् ... । पृ. 159 धनपाल जिस प्रकार वैदर्भी शैली के प्रयोग में निपुण हैं, उसी प्रकार पाञ्चाली शैली के प्रयोग में भी सिद्धहस्त हैं। विविध वर्णनों के भावों की अभिव्यञ्जना वे पाञ्चाली शैली में करते है । वामन के अनुसार पाञ्चाली शैली में माधुर्य व सुकुमार गुणों का समावेश होता है।' 226 भोज के मतानुसार पाञ्चाली शैली पाँच छ: पदों वाले समास तथा मधुर व सुकुमार पदावली से युक्त होती है। " शब्द और अर्थ का समान गुम्फन पाञ्चाली शैली की विशेषता है । " शब्दार्थ के समान गुम्फन से तात्पर्य शब्द और अर्थ के परस्पर सन्तुलन से है। यदि वर्ण्य विषय कोमल है तो भाषा भी उदात्त होगी और यदि वर्ण्य विषय ओजस्वी है तो भाषा भी ओजपूर्ण होगी। धनपाल के वर्णन शब्द और अर्थ के समान गुम्फन से शुशोभित है। धनपाल वर्ण्य विषय के अनुकूल ही भाषा का प्रयोग करते है पादशोभयापि न्यक्कृतपद्माभिरूरुश्रियापि इन्दुनापि प्रतिदिनं प्रतिपन्नकलान्तरेण प्रार्थ्यमानमुखकमलकान्तिभिर्मकरध्वजेनापि दर्शिताधिना लब्धहृदयप्रवेशमहोत्सवाभिरप्रयुक्तयोगाभिरेकावयवप्रकटाननमरुतामपि गतिं स्तम्भयन्तीभिरव्यापारितमन्त्राभिः सकृदाह्वानेन नरेन्द्रणामपि सर्वस्वमाकर्षयन्तीभिरसदोषधीपरिग्रहाभिरीषत्कटाक्ष पातेनाचलानपि द्रावयन्तीभिः सुरतशिल्पप्रगल्भतावष्टम्भेन रूपमपि निरुपयोगमवगच्छन्तीभिः । पृ. 9-10 यहाँ अयोध्या की वार- वधुओं की अत्यधिक सुन्दरता का वर्णन किया गया है। अयोध्या नगरी ऐसी सुन्दर वार वनिताओं से सुशोभित थी, जिनके पैरों की शोभा कमलों की शोभा को तिरस्कृत करती थी। प्रतिदिन उन्नति को प्राप्त करने वाला चन्द्रमा भी उनके मुख-तुल्य शोभा की प्रार्थना करता था । दृष्ट मानसिक व्यथा से व्यथित कामदेव भी उनके सरस हृदय प्रवेश रूपी महोत्सव में प्रवेश पा 9. माधुर्यसौकुमार्योपन्ना पाञ्चाली - का. सू. वृ., 1/2/13 समस्तपंचषपदामोजः कान्तिविवर्जितम् । 10. मधुरासुकुमारांच पांचाली कवयो विदुः ।। स. क., 2/30 शब्दार्थयोः समो गुम्फः पाञ्चाली रीतिरिष्यते । स. क., 2/31 11.
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy