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________________ तिलकमञ्जरी की भाषा शैली 225 प्रकार करता था जिस प्रकार से न धर्म का क्षय हो, न धन व्यर्थ में व्यय हो, जिस प्रकार राजलक्ष्मी पराङ्मुखी न हो, जिस प्रकार राजतेज का क्षय न हो, जिस प्रकार गुण मलीन न हो, जिस प्रकार शास्त्र उपहास न करें, जिस प्रकार मित्रवर्ग हर्षित हो तथा जिस प्रकार शत्रु स्पर्धा के लिए त्वरित न हों। इस प्रकार माधुर्य गुण व्यञ्जक वर्णों से राजा के उचित कर्मों में नियोजन का वर्णन किया गया है। अनुपरतकौतुकश्च मुहुः केशपाशे, मुहुर्मुखशशिनी, मुहुरधरपत्रे, मुहुरक्षिपात्रयोः, मुहु:कण्डकन्दले, मुहुःस्तनमण्डले, मुहुर्मध्यभागे, मुहुर्नाभिचक्राभोगे, महुर्जघनभारे, मुहुरूरुस्तम्भ्योः , मुहुश्चरणावारिरुहयोः कृतारोहावरोहया दृष्ट्या तां व्यभावयत्। पृ. 162 यहाँ हरिवाहन के द्वारा तिलकमञ्जरी के चित्रदर्शन का रमणीय वर्णन किया गया है। हरिवाहन बार-बार कभी उसके केशपाशों को देखता है, कभी सुन्दर मुख को, कभी अधर पत्रों को, कभी सुन्दर नेत्रों को, कभी सुन्दर ग्रीवा को, कभी उन्नत स्तनों को, कभी उसके मध्यभाग को, कभी उसके सुन्दर अरुस्तम्भों को, तो कभी चरणकमलों को देखता है। हरिवाहन उसके सौन्दर्य से प्रभावित होकर बार-बार उसे देखता है। यही चित्रदर्शन हरिवाहन के हृदय में तिलकमञ्जरी के प्रति प्रेमाङ्कर को जन्म देता है। तिलकमञ्जरी से वैदर्भी के कुछ अन्य उदाहरण द्रष्टव्य हैं - (i) यत्र मन्दिरोपवनान्यावासनगराणि, तमालतरुनिकुञ्जाः सदनानि लवङ्गपल्लवस्रस्तराः पर्यङ्काः, प्रणयकलहाः कलयः, नखदशनविन्यासाः शरीराभरणमणयः, प्रियावदनशतपत्राणि पानपात्राणि, कामसूत्रमध्यात्मशास्त्रम्, वाजीकरणयोगोपयोगो व्याधिभेषजम्, अनङ्गपूजा देवतार्चनम्, सुरतदूतिकागुरवो भुजङ्गवर्गस्य ... । पृ. 260 (ii) मुकुलितां मदेन, विस्तारितां विस्मयेन, प्रेरितामभिलाषेण, विषमितां व्रीडया वृष्टिमिवामृतस्य, सृष्टिमिवासौख्यस्य, प्रकृष्टान्तः प्रीतिशंसिनी वपुषि मे दृष्टिमसृजत् । पृ. 362 (iii) तासां च मध्ये शब्दविद्यामिव विद्यानाम्, कौशिकीमिव रसवृत्तिनाम्, उपजातिमिव छन्दोजातिनाम्, जातिमिवालङ्कृतीनाम्, वैदर्भीमिव रीतीनाम्,
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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