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तिलकमञ्जरी की भाषा शैली
227 गया था। वे एक अङ्ग, मुख मात्र को प्रकट कर देवताओं का गति को भी निरुद्ध कर देती थी, मन्त्र प्रयोग के बिना ही राजाओं का सर्वस्व अपने अधीन कर लेती थी, कटाक्ष मात्र से ही स्थिर हृदयवालों को भी अस्थिर कर देती थी।
यहाँ धनपाल ने अयोध्या की वाराङ्गनाओं के सौन्दर्य का वर्णन करने के लिए कोमल पदावली का प्रयोग किया है। सम्राट् मेघवाहन के वीर्य वर्णन में विषयानुकूल पूरुष पदावली का सुन्दर प्रयोग किया गया है -
यस्य फेनवत्स्फुटप्रसृतयशोट्टहासभरितभुवनकुक्षिरङ्गिकृतगजेन्द्रकृतिभीषणः प्रकटितानेकनरकपाल प्रलयकालविभ्रमेष्वाजिमूर्धसु संहजार विश्वानि शात्रवाणि महाभैरवः कृपाणः । यस्य चाकाण्डदर्शिसकलदिग्दाहो वज्र इव बिडौजसो निर्दाह महीभृत्कुलानि समन्ततः प्रज्वलत्प्रतापः। पृ. 14
मेघवाहन की समुद्र के फेन के समान विस्तृत यशरूपी अट्टहास से पृथ्वी के मध्यभाग को भरने वाली, अनेक यमदूतों को प्रकट करने वाली, महाकालरूपी खङ्ग संग्राम के आरम्भ में सभी शत्रुओं को नष्ट करती थी। जिसका अनवसर अनुभूत सभी दिशाओं के शत्रुओं के अन्तः ताप के समान, सब और देदीप्यमान तेज इन्द्र के वज्र के समान शत्रुओं का नाश करता था।
यहाँ पठन मात्र से ही अर्थ सहृदय के हृदय में प्रकाशित हो जाता है विद्याधर मुनि के वर्णन में भी धनपाल ने मनोहारी विषयानुकूल वर्ण योजना की है। विद्याधर मुनि के तपोतेज के वर्णन में कोमल पदावली व चारित्रिक दृढ़ता को प्रकट करने के लिए कठोर पदावली का समन्वय अद्भुत है।
उद्योतितसमस्तान्तरिक्षमार्गम्, आपीतसप्तार्णवजलस्य रत्नोद्गारमिव तीवो दानवे गनिरस्तमगस्त्यस्य, केरलीरक्षितशरणागतानङ्ग वै लक्ष्य प्रतिनिवृत्तमीक्षणानलमिव विशालाक्षस्य, तपोजन्मना जनितबहुमानं जगति महत्त्वेन, ग्रीष्मकूपमिव प्रकटतनुशिरोजालम्, दक्षिणार्णवपारमिव त्रिकूटकरकोरस्थलं कमलसमकरम् निष्परिग्रहमपि सकलत्रम्, परपुरुषदर्शनसावधान सौविदल्लमिन्द्रियवृत्तिरेव वनितानाम्, भूतापद्रुहकम्बुधरागमं साधुमयूराणाम् .... विद्याधर मुनिमपश्यत् । पृ. 23-24
इसी प्रकार धनपाल ने वर्ण्य विषय के अनुरूप पाञ्चाली शैली का