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________________ 218 तिलकमञ्जरी में वक्रोक्ति वहां प्रबन्ध रस परिवर्तन वक्रता होती है। कवि अपनी काव्य रचना के लिए इतिहास, पुराण अथवा किसी पुरातन काव्य रचना से कथानक का ग्रहण करता है। जब कवि अपनी रचना में नवीनता व मौलिकता के आग्रह से उस कथा के रस को तथावत् ग्रहण न करके रस परिवर्तन द्वारा रमणीयता का आधान करता है तो वहाँ प्रबन्ध रस परिवर्तन वक्रता होती है। धनपाल की तिलकमञ्जरी के कथानक का आधार जैनागम ग्रन्थ है। इन्होंने पुराणसारसंग्रह के अन्तर्गत आदिनाथ चरित के वर्णन में दी गई वज्रजंध और श्रीमती की कथा को तिलकमञ्जरी कथा का आधार बनाया है। यह कथा भक्ति रस युक्त है। वज्रजंध और श्रीमती पूर्वजन्म में ऐशान नामक स्वर्ग में ललिताङ्ग तथा स्वयंप्रभा नामक देव-दम्पत्ति थे। पुण्य क्षीण होने पर ललिताङ्ग ने जिनेन्द्रों की पूजा कर अपने अगले जन्म को सुधार लिया। तिलकमञ्जरी में भी ज्वलनप्रभ व प्रियङ्गसुन्दरी देवदम्पत्ति है। ज्वलनप्रभ अपना अगला जन्म सुधारने के लिये बोधि लाभ हेतु स्वर्ग से निकल पड़ता है। धनपाल ने भक्ति रस युक्त इस कथा के रस में परिवर्तन कर इसे शृङ्गार रस युक्त कर दिया है, जिससे यह कथा अत्यधिक मनोहारी बन गयी है। आनुषङ्गिक फल प्राप्ति-वक्रता : आचार्य कुन्तक के अनुसार "जहाँ प्रभूत यश समृद्धि का पात्र नायक अपने माहात्म्य के चमत्कार से एक ही फल की प्राप्ति में लगा हुआ होने पर भी उसी के सदृश सिद्धियों वाले दूसरे असंख्य फलों के प्रति निमित्त बन जाता है वह प्रबन्ध की अन्य प्रकार की वक्रता होती है। इसका अभिप्राय यह है कि प्रधान फल 94. इतिवृत्तान्यथावृत्त- रससम्पदुपेक्षया। रसान्तरेण रम्येण यत्र निर्वहणं भवेत्। तस्या एव कथामूर्तेरामूलोन्मीलितश्रियः विनेयानन्दनिष्पत्त्यै सा प्रबन्धस्य वक्रता।। वही,4/16,17 निःशेषवाङ्मयविदोऽपि जिनागमोक्ताः श्रेतुं कथा: समुपजातकुतूहलस्य। ___ तस्यावदात्त चरितस्य विनोदहेतो राज्ञः स्फुटाद्भुतरसा रचिता कथेयम्।। ति.म., भूमिका, पद्य 50 96. यत्रैकफलसम्पत्ति-समुद्युक्तोऽपि नायकः। फलान्तरेष्वनन्तेषु तत्तुल्यप्रतिपत्तिषु।। धत्रे निमित्ततां स्फारयशः सम्भारभाजनम्। स्वमाहात्म्यचमत्कारात् सापरा चास्य वक्रता।। व. जी., 4/22, 23
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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