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________________ तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य 219 की प्राप्ति में संलग्न नायक को जब उसके समान सिद्धियों वाले अनेक अन्य फलों की प्राप्ति होती है जो नायक के चरित्र को भी दीप्ति प्रदान करने में समर्थ होती हैं वहाँ आनुषङ्गिक फल प्राप्ति-वक्रता होती है। तिलकमञ्जरी कथा के नायक हरिवाहन का मुख्य उद्देश्य तिलकमञ्जरी को प्राप्त करना है। इसके लिए धनपाल ने अनेक रोचक परिस्थितियों की कल्पना की है जिससे हरिवाहन का न केवल तिलकमञ्जरी के साथ समागम हुआ है अपितु उसे विद्याधरों का चक्रवर्ती सम्राट बनने का अवसर भी प्राप्त हुआ है। इस प्रकार को आनुषङ्गिक फल प्राप्ति एक ओर नायक हरिवाहन के उत्कर्ष में वृद्धि करती है तो दूसरी ओर सहृदय को आनन्द प्रदान करती है। ___ इसी प्रकार कथा का सहनायक समरकेतु, जो अपने पिता की आज्ञा से अपने राज्य के दुष्ट सामन्तों के दमन हेतु निकला है, वह शत्रुओं का दमन भी करता है साथ ही उसका मिलन मलयसुन्दरी से होता है और कथा के अन्त में उसे मलयसुन्दरी की प्राप्ति होती है। इस प्रकार तिलकमञ्जरी में कुन्तक की वक्रोक्ति का चमत्कार तथा वर्णन वक्रता का वैचित्र्य सर्वत्र परिलक्षित होता है।
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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