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तिलकमञ्जरी में वक्रोक्ति
प्रकरण-वक्रता
वक्रोक्ति का पञ्चम प्रमुख भेद प्रकरण-वक्रता है। प्रकरण-वक्रता से तात्पर्य प्रकरण के सौन्दर्य अथवा अपूर्व उत्कर्ष से है। काव्य में अनेक प्रकरणों का समावेश होता है। इन प्रकरणों की समष्टि ही काव्य संज्ञा को प्राप्त करती है। काव्य का एकांश प्रकरण कहलाता है। जहां कवि इन प्रकरणों को अपनी नवनवोन्मेषशालिनी प्रतिभा से सरस, सुन्दर व रमणीय बना देता है, वहाँ प्रकरण-वक्रता होती है। कुन्तक ने प्रकरण-वक्रता के नौ भेद किये हैं -
1. भावपूर्ण स्थिति की उद्भावना 6. अङ्गिरस निष्यन्द निकष 2. उत्पाद्य लावण्य
7. अवान्तर वस्तु-योजना 3. उपकार्योपकारक भाव-वक्रता 8. गर्भाङ्क-योजना 4. विशिष्ट प्रकरण की अतिरंजना 9. सन्धि विनिवेश
5. रोचक प्रकरणों की अवतारणा भावपूर्ण स्थिति की उद्भावना : जहाँ अपने अभिप्राय को अभिव्यक्त करने वाली और अपने अपरिमित उत्साह के व्यापार से शोभायमान कवियों की प्रवृत्ति होती है, वहाँ प्रारम्भ से ही निःशङ्क रूप से उठने की इच्छा होने पर प्रकरण में वह कुछ अपूर्व वक्रता असीम रूप से प्रकाशित हो उठती है। तात्पर्य यह है कि जहाँ कवि भावपूर्ण स्थिति की उद्भावना के द्वारा प्रकरण में विशेष चमत्कार की योजना करे, वहाँ प्रथम प्रकार की प्रकरण-वक्रता होती है। धनपाल ने तिलकमञ्चरी में सर्वत्र ऐसी भावपूर्ण स्थिति की उद्भावना युक्त प्रकरणों की योजना की है।
विजयवेग समरभूमि से लौटकर मेघवाहन के समक्ष वज्रायुध और समरकेतु के युद्ध का वर्णन करते हुए समरकेतु की वीरता के विषय में बताता है। समरकेतु
87. वक्रोक्ति सिद्धान्त के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी कृष्ण-काव्य का अनुशीलन, पृ. 264 88. यत्र निर्यन्त्रणोत्साहपरिस्पन्दोपशोभिनी।।
व्यावृत्तिर्व्यवहर्तृणां स्वाशयोल्लेखशालिनी।। अव्यामूलादनाशंक्यसमुत्थाने मनोरथे। काव्युन्मीलति नि:सीमा सा प्रकरणे वक्रता।। हि. व. जी., 4/1, 2