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________________ 211 तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य धनपाल ने अनेक स्थलों पर सिंहादि अप्रधान चेतन प्राणियों का सुन्दर चित्रण किया है। उन्होंने अदृष्टपार सरोवर के वर्णन में गज, वानर, मोर, सारस आदि प्राणियों के स्वभाव का रमणीय निरुपण किया है - उल्लसन्मयूरकेकारवमुखराभिः शिखरदेशविश्रान्तमन्तः सारसाभिरिभकलभकरावकृष्टिविघटमानविटपाभिश्चटुलवानर वाह्यमानलतादोलाभिम्भः पानान्दनिद्रायमाणश्वापदसंकुलाभि.......। पृ. 202 अदृष्टपार सरोवर का मनोरम वातावरण आनन्दित व नृत्य करते हुए मोरों की केकाध्वनि से गुंजायमान था, सारस नामक पक्षी थकान को दूर करने के लिए वृक्षों के शिखरों पर विश्राम कर रहे थे, क्रीड़ा में रत गजशावक अपने सूण्डों से वृक्षों की शाखाओं को तोड़ रहे थे, वानर प्रकृति से ही चंचल होते हैं, वे लतारूपी झूलों के साथ क्रीड़ा कर रहे थे, हिंसक पशु आहारादि के पश्चात् जल पीकर तृप्त हो गए थे अत: उन्हें निन्द्रा का अनुभव हो रहा था। धनपाल का प्रकृति चित्रण अत्यधिक रमणीय है। वन, उद्यान, पर्वत, सरोवर, प्रभात, संध्या, वसन्त आदि के वर्णन में उन्होंने अपने काव्यकौशल के चमत्कार को प्रदर्शित किया है। आराम नामक उपवन की ताप को हरने वाली शीतल वायु के लिए धनपाल सहज एवं सुन्दर उत्प्रेक्षा करते हैं - मन्येदक्षिणमारुतेन विदितं सेव्यत्वमस्येदृशं, तेनोत्सृज्य च नाभिचन्दनगिरेरुद्दामशैत्यान्यपि। याम्याशाविरहोल्लसद्दवथुना नाथेन धाम्नां समं, संजाते शिशिरात्यये धनपतेराशामुखं सर्पति॥ लगता है कि दक्षिणवायु को भी इस आरामवन की ऐसी सेवा का ज्ञान है। इस सेवा से मलयपर्वत की उत्कृष्ट शीतलता भी चन्दनवनों को छोड़कर, दक्षिण दिशा के विरह से उत्पन्न ताप वाले रश्मि के नाथ सूर्य के साथ, शिशिर ऋतु के समाप्त हो जाने पर कुबेर के दिशामुख (उत्तरदिशा) को जा रही है। इस प्रकार धनपाल ने वस्तु के सहज सौन्दर्य को सजीवता से अभिव्यक्त किया है, तो वस्तुओं के विशिष्ट धर्मों को अतिरंजना से अलङ्कृत करके अपनी काव्य कुशलता का सुन्दर निदर्शन किया है। 86. ति. म., पृ. 212
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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