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तिलकमञ्जरी में वक्रोक्ति
कवियों के वर्णन का विषय होता है। अचेतन पदार्थों में प्राकृतिक पदार्थो का वर्णन आता है। ये प्राकृतिक जड़ पदार्थ शृङ्गार आदि रसों के उद्दीपक होते है।
धनपाल ने प्रधानभूत चेतन प्राणियों का हृदयाह्लादक वर्णन किया है। धनपाल रससिद्ध कवि है। इन्होंने शृङ्गार के विप्रलम्भ पक्ष का अत्यन्त मार्मिक चित्रण किया है -
गते च विरलतां विलीनतापे तपनतेजसि तरलितस्तिलकमञ्जरीसंगमाभिलाषेण तत्कालसमुपस्थितावधेर्गन्धर्वकस्यागमनमार्गमवलो कयितुमभ्यग्रवर्तिनः शिखाग्रचुम्बिताम्बरक्रोडमाक्रीडशैलस्य शिखरमारुरोह। तत्र निक्षिप्तचक्षुरीक्षमाणो दक्षिणाशां तावदास्त यावदस्तशिखरमगादशिशिरगभस्ति। ....अपरेधुरपि तेनैव क्रमेणोद्यानमगमत्, तेनैव विधिना तत्र सर्वाः क्रियाश्चकार, तथैव तस्यागमनमीक्षमाणो दिवसमनयत्। अकृतगतौ च तत्र क्रमादतिक्रामत्सु दिवसेषु शिथिलीभूततिलकमञ्जरीसभागमाशाबन्धस्य...जनितनिर्भरव्यथस्तस्य दवथुरविरतं सस्मार सस्मरेण चेतसा चित्रपट पुत्रिकानुसारपरिकल्पितस्य चक्रसेनतनयातनुलतालावण्यस्य। सततमन्वचिन्तयच्चारुतामनुदिनोपचीयमानस्य तस्याः प्रथमयौवनस्य यौवनोपचयपरिमण्डलस्तनमनङ्गवेदनोच्छेदनायेव सर्वदा हृदयगतमधत्त तद्रूपम्। पृ. 178-79
गन्धर्वक हरिवाहन को तिलकमञ्जरी का चित्र दिखाकर, उसके मन में प्रेमदीप को प्रज्जवलित कर, पुनः आने को कहकर चला जाता है। गन्धर्वक ही तिलकमञ्चरी और हरिवाहन का मिलन करवा सकता है। हरिवाहन प्रतिदिन उद्यान के पर्वत पर जाकर उसके आने की प्रतीक्षा करता है, परन्तु वह नहीं आता। दिनों के बीतने के साथ-साथ तिलकमञ्जरी से मिलन की उसकी आशा क्षीण होती जाती है तथा प्रेमज्वर बढ़ता जाता है। वह सदैव उसका ही चिन्तन करता है तथा उसके प्रतिबिम्ब का दर्शन करता है।
यहाँ धनपाल ने हरिवाहन के विरहताप का अत्यन्त सजीव चित्रण किया है। इसमें सहृदय को हरिवाहन की हृदयावस्था तथा तिलकमञ्जरी के प्रति उसके उत्कट प्रेम का सहज ही बोध हो जाता है।
84. मुख्यमक्लिष्टरत्यादिपरिपोषमनोहरम्।
स्वजात्युचितहेवाकसमुल्लेखोज्ज्वलं परम्।। व. जी., 3/7 85. वही, 3/8 की वृत्ति