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________________ तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य निर्वहणोपायशून्य हूँ, अब जो उपाय मेरे योग्य हो वह करें। इस प्रकार मेरी बाहु पर आश्रित पृथ्वी खेद सहित सन्तानोत्पत्ति की प्रार्थना करती है (जिससे वह चिरकाल तक उसके वन्दनीय वंश के आश्रय में रह सके। ) यहाँ पर पृथ्वी मेघवाहन से सन्तानोत्पत्ति की प्रार्थना कर रही है । दुःखी होना तथा प्रार्थना करना चेतन व्यक्ति के धर्म होते हैं । यहाँ अचेतन पृथ्वी पर चेतनता का आरोप कर चमत्कार उत्पन्न किया गया है। धनपाल ने अयोध्या नगरी का नारी रूप में मानवीकरण कर उपचार वक्रता को रमणीयता से चित्रित किया है विरचितालकेव मखानलधूमकोटिभिः 197 स्पष्टिताञ्जनतिलकबिन्दुरिव बालोद्यानैः आविष्कृतविलाससहासेकं दन्तवलभीभिः आगृहितदर्पणेव सरोभिः .... । पृ. 11 यज्ञाग्नि से निकली धूमधाराएँ अयोध्या रूपी नारी के कुटिलकेश थे, बालोद्यान उसके मस्तक के तिलक थे, हस्तिदन्तमयवलभियाँ उसके विलासमय हास थे तथा सरोवर उसके दर्पण थे। भोजराज के शत्रुओं की राजधानियों के वर्णन में उपचार वक्रता से उत्पन्न रूपक अलङ्कार का चमत्कार मनोहारी बन गया है प्रासादेषु त्रुटितशिखरश्वभ्रलब्धप्रवेशैः प्रातः प्रातस्तुहिनसलिलैः शार्वरैः स्नापितानि । 60. धन्याः शून्ये यदरिनगरे स्थाणुलिङ्गानि शाखा हस्तस्रस्तैः कुसुमनिकरैः पादपाः पूजयन्ति ॥ 60 भोजराज के शत्रुओं की निर्जन राजधानियों में, टूटे हुए शिखरों वाले मन्दिरों के छिद्रों में प्रवेश का अवसर पाकर, रात्रि के द्वारा हिम सलिल से अभिषिक्त शिवलिङ्गों की धन्यवाद के पात्र वृक्ष शाखा रूपी हाथों से गिरे हुए पुष्प गुच्छों से पूजा करते हैं। ति. म., भूमिका, पद्य 47
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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