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________________ , 188 तिलकमञ्जरी में वक्रोक्ति धौर्मन्दस्फुरितारुणा तिमिरिणीसर्वसहा सर्वथा। सीमा चित्तमुषामुष क्षणदयोः संधिक्षणौ वर्तते।" यह प्रातः बेला में चारण द्वारा गाया गया मंगलपद्य है। इसमें 'व' की 'र' से संयुक्त आवृत्ति दो बार हुई है। तृतीय प्रकार : दो से अधिक वर्णों का पुनः पुनः विन्यास- कुन्तक ने प्रकृत पद्य को वर्णविन्यासवक्रता के तृतीय प्रकार के उदाहरण के रूप में दिया है। इसके चतुर्थ चरण में 'स्तम्ब ताम्बूल' में त्, म्, ब् की तथा 'जम्बू जम्बारा' में 'ज', 'म', 'ब' की एक साथ दो-दो बार आवृत्ति हुई है। द्वितीय चरण में 'सरलतरलता' में 'र', 'ल', 'त' की एक साथ दो बार आवृत्ति हुई है। तिलकमञ्जरी से वर्ण विन्यास वक्रता के तृतीय प्रकार के उदाहरण उद्धृत किए जा रहे है - निरोद्धं पार्यते केन समरादित्यजन्मनः। प्रशमस्य वशीभूतं समरादित्यजन्मनः।।" इस श्लोक में हरिभद्रसूरि कृत कथा के उत्कर्ष का वर्णन किया गया है। इसमें 'समरादित्यजन्मनः' पद के सभी वर्गों की उसी क्रम में प्रथम व द्वितीय चरण में दो बार आवृति हुई है। वन्द्यास्ते कवयः काव्यपरमार्थ विशारदाः। विचारयन्ति ये दोषान्गुणांश्च गतमत्सराः॥ प्रस्तुत पद्य में महाकवि धनपाल ने रागद्वेषरहित काव्यज्ञों की प्रशंसा की है। इस पद्य के प्रथम चरण में 'कवयः काव्य' में क्, व्, य् की दो बार आवृत्ति हुई 43. ति.म., पृ. 237 44. भग्नैलावल्लरीकास्तरलितकदलीस्तम्बताम्बूल जम्बू - जम्बीरास्तालतालीसरलतरलतालासिका यस्य जमुः। वेल्लत्कल्लोलहेला बिसकलनजडा: कूलकच्छेषु सिन्धोः सेनासीमन्तिनीनामनवरतरताभ्यासतान्तिंत समीरा:।। व. जी., पृ. 173 45. ति. म., भूमिका, पद्य 29 46. वही, भूमिका, पद्य 8
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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