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तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य
यहाँ सम्राट् मेघवाहन के दु:ख के एकमात्र कारण पुत्राभाव का वर्णन किया गया है। यहाँ 'ग' वर्ण 'ङ' के साथ संयुक्त रूप में दो बार आवृत्त हुआ है। (ख) द्विरुक्त त, ल, न का पुनः पुनः विन्यास
स्वप्नेरसातलात्तत्काल मेवोद्गतमनेकपुष्पस्तबकसंबाधविटपच्छन्नमच्छिन्नसंतानमधुकरसहस्रोपसेवितमुत्फुल्ल बल्लीनिकरपरिकरतया.पारिजातद्रुममद्राक्षीत्। पृ. 207
यहाँ समरकेतु द्वारा स्वप्न में पारिजात वृक्ष के दर्शन का वर्णन किया गया है। यहाँ पर द्विरुक्त 'न' तथा 'ल' की दो बार आवृत्ति हुई है।
उपसृतं च तं क्षिति चुम्बिना सरभसप्रसारितबाहुयुगलः प्रवेशयन्निव हृदयमेकतां नयन्निव शरीरेण .... पुलकजालमालिलिङ्ग। पृ. 231
यहाँ समरकेतु के प्रति हरिवाहन के प्रेम का वर्णन है। यहाँ द्विरुक्त 'न' की दो बार आवृत्ति हुई है।
राजपुरुषस्तेनानुलेपनेन तासामस्मदासन्नवर्तिनीनां राजकन्यानामलिकलेखासु तिलकानकार्षीत्। पृ. 289
यहाँ जिनाभिषकोत्सव के लिए अपहृत राजकन्याओं का वर्णन किया गया है। प्रस्तुत पंक्ति में द्विरुक्त 'न' वर्ण की चार बार आवृत्ति हुई है। (ग) 'र' आदि से युक्त वर्णों का पुनः पुनः विन्यास - वार्योऽनार्यः स निर्दोषे यः काव्याध्वनि सर्पताम्। अग्रगामितया कुर्वन्विधनमायाति सर्पताम्।।"
इसमें महाकवि धनपाल ने दुर्जनों का वर्णन किया है। इसके प्रथम चरण में 'य' का 'र' के साथ संयुक्त रूप में दो बार प्रयोग हुआ है।
प्राज्यप्रभावः प्रभवो धर्मस्यास्तरजस्तमाः।
ददतां निवृतात्मान आद्योऽन्येऽपि मुदं जिनाः॥ यह मंगलाचरण का द्वितीय पद्य है। इसमें जिन स्तुति की गई है। इसके प्रथम चरण में 'प' की 'र' के साथ संयुक्त रूप में तीन बार आवृत्ति हुई है।
41. 42.
ति. म., भूमिका, पद्य 9 वही, पद्य 2