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________________ 186 तिलकमञ्जरी में वक्रोक्ति वर्ण्य वस्तु के औचित्य से सुशोभित होने वाली यह द्वितीय प्रकार की वर्णविन्यासवक्रता, अपने वर्गान्त से संयुक्त स्पर्श वर्णों की आवृत्ति, द्विरुक्त त, ल, न की पुनः पुनः आवृत्ति तथा 'र' आदि वर्गों से संयुक्त शेष सभी वर्गों की पुनः पुनः आवृत्ति के भेद से पुनः तीन प्रकार की होती है।” तिलकमञ्जरी से वर्णविन्यास से वर्णविन्यासवक्रता के द्वितीय प्रकार के तीनों भेदों के उदाहरण द्रष्टव्य हैं - (क) वर्गान्त संयुक्त स्पर्श वर्णो (कवर्गादि) का पुनः पुनः विन्यास श्रान्तातिदीर्घसोपानपथलङ्घनेन, इत्यङ्गभारं शालशृङ्गोत्सङ्गिनं कृत्वा ...। पृ. 277 यहाँ पर समरकेतु के दर्शन से कामार्त, मलयसुन्दरी की क्रियाओं का वर्णन किया गया है। यहाँ स्पर्श वर्ण 'ग' की वर्गान्त 'ङ' के साथ अनेक बार आवृत्ति चित्ताकर्षक हो गई है। अखण्डदण्डकारण्यभाजः प्रचुरवर्णकात्। व्याघ्रादिवसाघ्रातो गद्याव्यावर्तते जनः।।" प्रस्तुत श्लोक में गद्य काव्य का वर्णन किया गया है। इसके प्रथम चरण में 'ड' वर्ण की अपने वर्गान्त 'ण' के साथ संयुक्त रूप में दो बार आवृत्ति हुई है। प्रसन्नगम्भीरपथा रथाङ्गभिथुनाश्रया। पुण्या पुनाति गङ्गेव गां तरङ्गवती कथा।” इस पद्य में धनपाल ने कथा की महत्ता का वर्णन किया है। इस पद्य के द्वितीय चरण में स्पर्श वर्ण 'ग' अपने वर्गान्त से संयुक्त होकर दो बार आवृत्त हुआ नमो जगन्नमस्याय मुनीन्द्रायेन्द्रभूतये।" यहाँ इन्द्रभूति नामक मुनीन्द्र को नमस्कार किया गया है। इसमें स्पर्श वर्ण 'द' की अपने वर्ग के अन्तिम वर्ण 'न' से संयुक्त होकर दो बार आवृत्ति हुई है। केवलात्मजाङ्गपरिष्वङ्गनिवृत्तिं नाध्यगच्छत्। पृ. 20 37. वर्गान्तयोगिनः स्पर्शा द्विरुक्तास्त-ल-नादयः। शिष्टाश्च रादिसंयुक्ताः प्रस्तुतौचित्यशोभिनः।। व. जी., 2/2 38. ति. म., भूमिका, पद्य 15 39. वही, पद्य 23 40. वही, पद्य 19
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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