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________________ तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य 185 4. वर्णविन्यास में वैचित्र्य होना चाहिए। कवि को चाहिए कि वह काव्य को पूर्वार्वत वर्णों का परित्याग कर उसे नवीन वर्णों की आवृत्ति से सुशोभित करे। 5. वर्णविन्यास श्रुतिपेशल, रमणीय तथा औचित्यपूर्ण होना चाहिये।' द्वितीय प्रकार : (दो वर्णों का पुनः पुनः विन्यास) - आचार्य कुन्तक ने प्रकृत पद्य को वर्णविन्यासवक्रता के द्वितीय प्रकार के उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया है। इसके द्वितीय चरण में 'ताल ताली' में त् एवं ल् की दो बार आवृत्ति हुई है तथा तृतीय चरण में 'वेल्लत्कल्लोल' में 'ल्ल' की दो बार तथा 'कल्लोल', 'विसकलन' एवं कूलकच्छेषु में क्, ल् की तीन बार आवृत्ति हुई है। तिलकमञ्जरी से वर्णविन्यासवक्रता के द्वितीय प्रकार के उदाहरण द्रष्टव्य हैं - वन्येभैभृशमपि गाह्यमानकूले कालुष्यं कलयति यत्र जातु नाम्भः। जात्यैवापहृतमलैः फलैरसक्तं संसक्तं तटकतकद्रुमावलीनाम्॥" इस पद्य में अदृष्टपार सरोवर के जल की निर्मलता का वर्णन किया गया है। यहाँ 'कूले', 'कालुष्यम्' एवं 'कलयति' में क्, ल् वर्णों की तीन बार आवृत्ति हुई है। प्रभातप्रायासौ रजनीररुणज्योतिररुणं रुणद्धीदं रोदो दिशि दिशितमस्ताम्यतितमाम् प्रभाछिद्रश्चन्द्रो दलति दलमैत्री जलरुहां रहोऽनुत्साहस्य श्लथयनृपनिद्रासुखरसम्॥ यह प्रभातकालिक मंगलस्रोत पद्य है। यहाँ रजनीररुणज्योतिररुणं रुणद्धीदं ' में र्, ण् वर्णो की तीर बार, 'तमस्ताम्यतितमाम्' में त्, म् वर्णों की तीन बार 'दिशि दिशि' में द्, श् तथा दलति दलमैत्री' में द्, ल् वर्णो की दो बार आवृत्ति हुई है। 32. पूर्वावृत्तपरित्यागनूतनावर्तनोज्ज्वला। व.जी., 2/4 33. समानवर्णमन्यार्थे प्रसादि श्रुतिपेशलम्। औचित्ययुक्तमाद्यादिनियतस्थानशोभि यत्।। वही, 2/6 34. भग्नैलावल्लरीकास्तरलितकदलीस्तम्बताम्बूल जम्बू - जम्बीरास्तालतालीसरलतरलतालासिका यस्य जह्वः। वेल्लत्कल्लोलहेला बिसकलनजडाः कूलकच्छेषु सिन्धोः सेनासीमन्तिनीनामनवरतरताभ्यासतान्तिंत समीराः।। व. जी., पृ. 173 35. ति. म., पृ. 205 36. वही, पृ. 359
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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