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________________ 181 तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य उपयोग करता है वे सभी वक्रोक्ति के भेद है।” कुन्तक ने काव्य-सौन्दर्य विषयक सभी तत्त्वों का समावेश वक्रोक्ति में किया है। कुन्तक ने वक्रोक्ति के छः भेद किए हैं। उन्होंने काव्य की लघुतम इकाई वर्ण से लेकर उसके महत्तम रूप प्रबन्ध तक वक्रोक्ति का साम्राज्य माना है। ये छः भेद हैं - 1. वर्ण विन्यास-वक्रता 4. वस्तु वक्रता 2. पद पूर्वार्ध-वक्रता 5. प्रकरण वक्रता 3. पद परार्ध-वक्रता 6. प्रबन्ध वक्रता कुन्तक के अनुसार महाकवियों की प्रतिभा से उबुध वक्रता के हजारों अन्य भेद हो सकते हैं, जिनका सहृदय स्वयं अनुभव कर सकते हैं।" वर्ण विन्यास-वक्रता काव्य का शरीर शब्द और अर्थ के सहभाव से निर्मित होता है। शब्द अनेक वर्णो से मिलकर बनता है। इन्हीं वर्णों के वैचित्र्य को देखकर कुन्तक ने वर्णविन्यासवक्रता को वक्रोक्ति का प्रथम भेद माना है। वर्ण कवि के मन के भावों के वाहक होते हैं तथा कवि सृष्टि की विशेष अनुभूतियों को सामाजिक तक प्रेषित करते हैं। सुकवि कुशलतापूर्वक वर्णो का चयन करता है। उचित वर्णों का चयन व विन्यास कविगत भावों को सहृदय तक यथावत् सम्प्रेषित करता है। अत: वर्णनानुकूल वर्णो का चयन कवि प्रतिभा को द्योतित करता है। आचार्य कुन्तक ने वर्णविन्यासवक्रता का लक्षण किया है - जब एक, दो अथवा बहुत से वर्ण अनेकशः संयोजित किए जाते है तो वहाँ वर्णविन्यासवक्रता होती है। यह वक्रता तीन प्रकार की है' - 19. भारतीय काव्यशास्त्र की भूमिका, पृ. 179 20. एते च मुख्यतयावक्रता प्रकाराः कतिचिन्नदर्शनार्थ प्रदर्शिताः। शिष्टाश्च सहस्रशः सम्भवन्तीति महाकविप्रवाहे सहृदयैः स्वयमेवोत्प्रेक्षणीयाः। व. जी., 1/19 की वृत्ति 21. एकौ द्वौ बहवो वर्णा बध्यमानाः पुनः पुनः। स्वल्पान्तरास्त्रिया सोक्ता वर्णविन्यासवक्रता ।। वही, 2/1
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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