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________________ 180 तिलकमञ्जरी में वक्रोक्ति प्रतिपादन किया और वक्रोक्ति को काव्य की आत्मा के रूप में प्रतिष्ठित किया । 'वक्रोक्ति जीवित' के रूप में वक्रोक्ति सिद्धान्त उनके नितान्त मौलिक व प्रौढ़ चिन्तन का निदर्शन है। कुन्तक की ग्रन्थ रचना का मुख्य उद्देश्य है - 'लोकोत्तरचमत्कारकारि वैचित्र्यसिद्धि' " अर्थात् अलौकिक आह्लाद को उत्पन्न करने वाले वैचित्र्य की सिद्धि । कुन्तक के अनुसार वक्रोक्ति का लक्षण है - वक्रोक्तिरेव वैदग्ध्य भङ्गीभणितिरुच्यते।" अर्थात् वैदग्धपूर्ण भङ्गिमा द्वारा कथन वक्रोक्ति है। यहाँ वैदग्ध्य का अर्थ है विदग्ध (प्रतिभावान् कवि) का भाव अर्थात् कवि की काव्यकर्म कुशलता। भङ्गी का अर्थ है - विच्छिति, शोभा अथवा चारुता। भणिति का अर्थ है कथन। इस प्रकार वक्रोक्ति कविकर्म की कुशलता से उत्पन्न होने वाले चमत्कार के ऊपर आश्रित होने वाला कथन का प्रकार है।” कुन्तक ने एक अन्य तत्व पर भी अत्यधिक बल दिया है वह है 'सहृदय हृदय आह्लादकारिणी' अर्थात् काव्य में सहृदयों के हृदय को आह्लादित करने की क्षमता। कुन्तक मानते हैं कि वही रचना श्रेष्ठ है, वहीं काव्य वरेण्य है जिसमें कुशल कवि व्यापार से युक्त चारुता (विच्छित्ति) पूर्ण कवि-कथन (उक्ति की प्रस्तुति) ऐसा हो, जो सहृदय को आह्लादित करने में समर्थ हो।" वक्रोक्ति के भेद आचार्य कुन्तक ने वक्रोक्ति को काव्य के जीवित (आत्मा) के रूप में प्रतिष्ठित किया है। इनके अनुसार काव्य में जिस सौन्दर्य का आस्वादन होता है, वह वक्रता के कारण होता है। कवि अपनी प्रतिभा के बल पर अपनी कृति में चमत्कार उत्पन्न करने के लिए सहज अथवा सचेष्ट रूप में जिन साधनों-प्रसाधनों का 14. व. जी., 1/2 15. वही 1/10 16. वैदग्ध्यं विदग्धभावः, कविकर्मकौशलं, तस्यभनी विच्छित्तिः, तया भणितिः । विचित्रैवाभिधा वक्रोक्तिरित्युच्यते। वही, 1/10 की वृत्ति 17. भारतीय साहित्य शास्त्र, खण्ड-2, पृ. 223 18. वक्रोक्ति सिद्धान्त और हिन्दी कविता, पृ. 9
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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