________________
166
तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य एक अन्य स्थल पर मेघवाहन को विष्णु के समान बताया गया है - 'अच्युत इव शङ्खचक्रभ्याम्।"" शङ्ख का अर्थ है शम् कल्याणम्, ख खनति जनयति अर्थात् जो कल्याण को उत्पन्न करता है। मेघवाहन अपनी प्रजा के लिए कल्याणकारी है। चक्र अर्थात् अस्त्र विशेष (मेघवाहन के अर्थ में तलवार) से युक्त होने के कारण वह भीषण भी है अर्थात् शत्रुओं को दण्ड देने वाला तथा दुष्टों को जिस प्रकार विष्णु भक्तों के लिए कल्याणकारी तथा दुष्टों को विनय का पाठ पढ़ाने वाला है। दुष्टों का संहार करने वाले हैं, उसी प्रकार मेघवाहन प्रजा के लिए कल्याणकारी तथा शत्रुओं को अपनी खड्ग से पाठ पढ़ाने के कारण भयङ्कर है। इस प्रकार यहाँ समान विशेषणों से मेघवाहन के सत्त्वोत्कर्ष का रमणीय चित्रण किया गया है। अतः सत्त्वौचित्य है।
हरिवाहन के सत्त्वोत्कर्ष का चित्रण करते हुए धनपाल कहते हैं कि वन में मृगया व्यसनी राजकुमारों के प्रेरित किए जाने पर तथा शस्त्र विद्या में पूर्णतः निपुण होने पर भी हरिवाहन स्वाभाविक दयालुता के कारण पशुओं को नही मारता था। (न कि सिंह आदि पशुओं से भय होने के कारण)।" हरिवाहन शस्त्र विद्या में निपुण था तथा वह अत्यधिक पराक्रमी व निडर था तथापि मृगया में उसकी रुचि नहीं थी। यहाँ हरिवाहन का स्वाभाविक सत्त्वोद्रेक सहृदयहृदयावर्जक है। अतएव सत्त्वौचित्य है। सारसंग्रहौचित्य काव्य में सारसंग्रह अर्थात् सारांश (निचोड़) से युक्त वाक्य का प्रयोग ही सारसंग्रहौचित्य है। सारसंग्रह युक्त वाक्य से अभिव्यक्त आनन्दस्वरूप निश्चितफलक काव्यार्थ सभी को प्रिय लगता है। आचार्य क्षेमेन्द्र ने इसका उदाहरण अपनी ही काव्य रचना मुनिमतमीमांसा से दिया है।"
90. ति.म., पृ. 13 91. जातकौतुकैश्च मृगयाव्यसनिभिः क्षितिपतिकुमारैः क्षपणाय तेषामनुरक्षणं व्यापार्यत न च
प्रकृतिसानुक्रोशतया शस्त्रगोचरगतानपि ताञ्जधान। वही, पृ. 183 सारसङ्ग्रहवाक्येन काव्यार्थः फलनिश्चितः ।
अदीर्घसूत्रव्यापार इव कस्य न संमतः ।। औ. वि. च., का. 34 93. विविधगहनगर्भग्रन्थसम्भारभारैर्मुनिभिरभिनिविष्टैस्तत्त्वमुक्तुं न किञ्चित् ।
कृतरुचिरविचारं सारसमेतन्महर्षेरहमिति भवभूमि हमित्येव मोक्षः ।। वही, पृ. 348