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तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य उनके साथ आश्रम में भेजा था। विद्याधर मुनि के प्रति मेघवाहन के ये वचन अपने कर्तव्यों के प्रति उसकी सजगता व समाज के प्रति उसके उत्तरदायित्व को प्रकट करते है।
प्रात:काल में राजा के उद्बोधनार्थ चारण द्वारा सस्वर पढ़ा गया प्रकृत श्लोक सन्तानाभाव से संतृप्त मेघवाहन के लिए औचित्यपूर्ण है। इसका अर्थ है कि तुम्हारी दु:खों के समान अन्धकारमय रात्रि बीत गई है। तुम्हारे कुल के समान सूर्य मण्डल जगत् को प्रकाशित करने के लिए उदित हो रहा है। अतः शान्त होकर इष्ट देवताओं की आराधना करो। इस श्लोक से यह ध्वनित हो रहा है कि मेघवाहन, जो कि यौवनावस्था का अत्यधिक समय बीत जाने पर भी संतान प्राप्त न होने के कारण सदा चिन्ताकुल रहता है, का सन्तानोत्पत्ति अवरोधक प्रारब्ध समाप्त प्रायः है। अपने जन्म से मेघवाहन के वंश को करने वाल सूर्य के समान तेजस्वी पुत्र आने वाला है। इस श्लोक के माध्यम से चारण मेघवाहन को धार्मिक कार्यों को करने के लिए भी प्रेरित कर रहा है।
हरिवाहन की महिमा की गुणगान करते हुए एक चारण कहता है - "पृथ्वीपतियों के मध्य असाधारण महिमा से युक्त एक तुम ही देखने योग्य हो, जिसने विद्याधराधिपतियों को न्यूनीकृत करके इस वैताढ्य पर्वत की उत्युच्च भूमिका पर अपनी स्थिति दृढ़ की है। अर्थात् विद्याधर सम्राट्त्व को प्राप्त किया है' यह वाक्य हरिवाहन के अतुलनीय सामर्थ्य को व्यक्त कर रहा है। हरिवाहन पृथ्वीस्थ अयोध्या नगरी का युवराज है, जिसने अपने असाधारण कर्मों से ने केवल सभी भूभृतों को लघु कर दिया, अपितु विद्याधरों की दिव्य नगरी में पहुँचकर विद्याधर सम्राट्त्व को प्राप्त कर लिया।
समरकेतु के शौर्य की प्रशंसा में मेघवाहन द्वारा कहा गया यह वाक्य "धन्यस्त्वमेको जगति यस्मादुपजातमात्मनः पराजयं विजयमिव सभासु शंसति प्रीतिविकसिताक्षो विपक्षलोकः सर्वथा औचित्यपूर्ण है। वस्तुतः समरकेतु एक ऐसा वीर है, जिसने वज्रायुध सदृश अजेय योद्धा को भी वीरता का पाठ पढ़ा दिया, 84. विपदिव विरता विभावरी नृप निरपायमुपास्स्व देवताः।
उदयति भुवनोदयाय ते कुलमिव मण्डलमुष्णदीधिते : ।। ति.म., पृ. 28 85. द्रष्टव्यस्त्वमनन्यतुल्यमहिमा मध्ये धरित्रीभृतां येनाध:कृतखेचरेन्द्रततिना बद्धास्य मूर्ध्नि
स्थितिः। वही, पृ. 240 86. वही, पृ. 101