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________________ तिलकमञ्जरी में औचित्य पदसमूह को वाक्य कहते है । वर्ण्य विषय के अनुरूप उचित पदों से युक्त वाक्य अपूर्व चमत्कार का आधान करता है। इसे ही आचार्य क्षेमेन्द्र ने वाक्यौचित्य कहा है । इनके अनुसार जिस प्रकार दान के कारण प्रशस्त, एश्वर्य एवं सत्स्वभाव तथा सदाचरण से विद्या सहृदयों के लिए अभीष्ट होती है, उसी प्रकार औचित्यपूर्ण वाक्य काव्यमर्मज्ञों के लिए अभीष्ट होता है। " वाक्यौचित्य का उदाहरण क्षेमेन्द्र ने अपनी रचना विनयवल्ली से दिया है। " तिलकमञ्जरी में वाक्यौचित्य का सुन्दर परिपाक हुआ है। मेघवाहन के शौर्य का वर्णन करते हुए धनपाल कहते हैं - इस से ध्वनित हो रहा है कि मेघवाहन के शत्रु समूह का समूल नाश हो चुका है। यहाँ मेघवाहन के स्वाभाविक शौर्य का ज्ञान हो रहा है तथा अर्थ की अवगति भी सम्यग्तया हो रही है। अतएव यहाँ वाक्यौचित्य है। 80. दृष्ट्वा वैरस्य वैरसस्यमुज्झितास्त्रों रिपुव्रजः । यस्मिन्विश्वस्य विश्वस्यं कुलस्य कुशलं व्यधात् ॥2 , विद्याधर मुनि को देखकर भावविह्वल सम्राट ! मेघवाहन द्वारा उक्त यह वाक्य " इदं राज्यं एतानि वसूनि इदं शरीरं एतद्गृहं गृह्यतां स्वार्थसिद्धये परार्थसम्पादनाय वा, यदत्रोपयोगार्हम् 8 औचित्यपूर्ण है। ऋषि मुनि सदैव आदर के योग्य होते है । वे परोपकार के लिए ही शरीर को धारण करते है । विद्या दान व उपदेशों के द्वारा ही लोगों को श्रेष्ठ नागरिक बनाते है तथा सदैव जन-हित के कार्यों में सलग्न रहते है। यज्ञों तथा धार्मिक अनुष्ठानों से वे वातावरण तथा लोगों के चित्तो व विचारों को पवित्र करते है। इनका स्वार्थ भी परार्थ से ही प्रेरित होता है। अतः राजा का यह कर्तव्य है कि वह अपना सर्वस्व देकर भी उनके कार्यों में आ रहे विघ्नों को दूर करे। महाराज दशरथ ने भी महर्षि विश्वमित्र के धार्मिक कार्यों में आ रहे विघ्नों को दूर करने के लिए अपने प्रिय पुत्र राम को 81. 163 82. 83. औचित्यरचितं वाक्यं सततं संमतं सताम् 1 त्यागोदग्रमिवैश्वर्यं शीलोज्जवलमिव श्रुतम् ।। औ. वि.. च., का. 12 वही, पृ. 12 ति. म., पृ. 16 वही, पृ. 26
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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