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________________ तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य तिलकमञ्जरी में रसौचित्य का सुन्दर परिपाक दृष्टिगोचर होता है। धनपाल का रसानुकूल वर्णन कौशल काव्य में अपूर्व चमत्कार को उत्पन्न करता है। तिलकमञ्जरी का प्रधान रस शृङ्गार है, परन्तु धनपाल ने अन्य रसों का भी सुन्दर सन्निवेश किया है जिससे सहृदय रसास्वादजन्य आनन्दानुभूति के सागर में निमग्न हो जाते हैं। तिलकमञ्जरी से रसौचित्य के कुछ उदाहरण द्रष्टव्य है - 158 शृङ्गारसौचित्य : नायक हरिवाहन को देखकर नायिका तिलकमञ्जरी उसके प्रेमपाश बंध जाती है। प्रथम दर्शन में ही तिलकमञ्जरी का पुरुषों के प्रति विद्वेषीभाव तिरोहित हो जाता है। तिलकमञ्जरी की असमञ्जसपूर्ण क्रियाओं में शृङ्गाररस सुन्दर रूप में अभिव्यञ्जित हो रहा है। तिलकमञ्जरी हरिवाहन को अकस्मात् अपने समक्ष देखकर हड़बड़ा जाती है। दूसरे ही क्षण उसके हृदय में काम प्रवेश पा जाता है। लज्जावश वह हरिवाहन के द्वारा पूछे गए प्रश्नों का भी उत्तर नहीं देती। मुख नीचा करके उसके पास से चल पड़ती है । वामतः मुख करके (कुछ मुख मोड़कर) उसके समक्ष कुछ क्षण खड़ी होती है और हरिवाहन पर आह्लादित करने वाली कटाक्ष वृष्टि करती है।” तत्पश्चात् लज्जा से अवनतमुखी होकर वहाँ से निकलकर पास ही तमाल वृक्षों के झुरमुट में जाकर खड़ी हो जाती है तथा वहां से लताजाल के मध्य से प्रिय दर्शन के लिए झाँकती है। कभी जम्भाई लेती है, तो कभी पुष्पावचयन के व्याज से द्वार की ओर आती है। " 74 प्रिय को देखकर हृदय की दशा विचित्र ही हो जाती है। तिलकमञ्जरी हरिवाहन के समक्ष न तो अपने भावों को स्पष्ट रूप से प्रकट कर या रही है और न ही उन्हें छिपा रही है। यहाँ हरिवाहन आलम्बन विभाव है तथा लताएं, पुष्प व 73. 74. अवनतमुखी च स्थित्वा मुहूर्तमदत्तोत्तरैव तस्मादशोकतरुतलादचलत् । .. किंचिद्वामतः कुर्वती मामभिमुखमगमत् । स्थित्वा च स्थिरद्वारनिकटे मुहूर्तमीषद्वलितकंधरा मुहुर्मुहुर्मोहाह्लादकारिणीं कटाक्षवृष्टिम् । ति. म., पृ. 249-250 विनिर्गत्यैलालतासदानाद्देवी तिलकमञ्जरी .. गात्रप्रभासंभारेण सकलमुद्द्योतयन्ती तं वनोद्देशमवनतमुखी सलज्जेव नातिनेदीयसस्तमालतरुगुल्मस्य मूले गतिविलम्बमकृत । स्थित्वा च तस्यान्तरेषु मुहूर्तमुपशान्तसंततश्वासपवनोद्गमास्वेदसलिलार्द्रजघनमण्डलासक्तमादरेण ... लताजालकोन्तरेण प्रतीपमवलोकितवती कृत्वा च क्षणेन जृम्भारम्भनिष्पद्वाष्पबिन्दुक्लिन्नलोचनापाङ्गमङ्गभङ्ग प्रस्थिता । तदेव चकितचकिता अलीकमेव कुर्वती मार्गलतासु कुसुमावचयमागता द्वारमस्य । वही, पृ. 354
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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