________________
तिलकमञ्जरी में औचित्य
157 प्रीति अर्थात विशेष आनन्द के लिए 'रति' पद का प्रयोग किया गया है। -
अन्तर्दग्धागुरुशुचावाप यस्य जगत्पतेः ।
नारीणां सहतिश्चारुवेषाकारगृहे रतिम् ॥ प्रकृत पद्य में आनन्द के अन्य पर्यायों को छोड़कर 'रति' पद का प्रयोग किया गया है। कामदेव की पत्नी का नाम भी रति है। यहाँ इस पद से उत्कृष्ट आनन्दानुभूति की अभिव्यञ्जना हो रही है अतएव पदौचित्य है।
सम्राट मेघवाहन के लिए 'प्रजापति पद का प्रयोग किया गया है। प्रजापतिः -पाति रक्षतीति पतिः, प्रजानां पातिः प्रजापतिः अर्थात् जो रक्षा करता है, वह पति अथवा स्वामी है तथा जो प्रजा की रक्षा करता है वह प्रजापति है। मेघवाहन प्रजापालक था उसने ब्राह्मणादि वर्गों के कर्मों व धर्मों को यथाक्रम व्यवस्थित कर दिया था। जिससे वे निज-निज कार्यों का सम्पादन करते हुए पूर्णतः सुखी व प्रसन्न थे। इस दृष्टि से मेघवाहन के लिए प्रजापति पद का प्रयोग
औचित्यपूर्ण है। रसौचित्य
रस का औचित्यपूर्ण निबन्धन ही रसौचित्य है। औचित्य से युक्त रमणीय रस सहृदयों के चित्तों को उसी प्रकार आनन्दित कर देता है, जिस प्रकार मधुमास अशोक वृक्ष को प्रफुल्लित कर देता है। ध्वनिकार आनन्दवर्धन भी इस तथ्य का समर्थन करते हुए कहते हैं "अनौचित्य के अतिरिक्त रसभंग का और कोई कारण नहीं है और प्रसिद्ध औचित्य का अनुसरण ही रस का परम रहस्य है।'' रसौचित्य के उदाहरणस्वरूप आचार्य क्षेमेन्द्र ने कुमारसम्भव का प्रकृत पद्य उद्धत किया है।”
68. ति.म., पृ. 16 69. यथाविधे व्यवस्थापितवर्णाश्रमधर्म: यथार्थ : प्रजापतिः । वही, पृ. 2 70. कर्वाशये व्याप्तिमौचित्यरुचिरो रसः।
मधुमास इवाशोक करोत्यंकुरितं मनः ।। औ. वि. च., का. 16 अनौचित्यादृते नान्यद्रसभङ्गस्य कारणम् ।
प्रसिद्धौचित्यबन्धस्तु रसस्योपनिषत्परा ।। ध्वन्या., 3/14 की वृत्ति 72. बालेन्दुवक्राण्यविकासभावाद्बभुः पलाशान्यतिलोहितानि ।
सद्यो वसन्तेन समागतानां नखक्षतानीव वनस्थलीनाम् ।। कुमार, 3/21