________________
तथा सशक्त व स्नेहिल निर्देशन के द्वारा ही यह शोध-प्रबन्ध अपनी पूर्णता को प्राप्त कर पाया है। इस शोध-प्रबन्ध में जो भी सार है, वह इनके उत्कट वैदुष्य तथा पारदर्शिनी प्रतिभा के कारण है। एतदर्थ, उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापन हेतु उपयुक्त शब्द न मिलने के कारण मेरी लेखनी शिथिल हो रही है। मैं सदैव उनके चरण-कमलों में सादर नमन करता हूँ।
काव्यशास्त्र, भाषाविज्ञान तथा व्याकरण की मान्य विदुषी प्रो. दीप्ति त्रिपाठी का स्नेहाशीश मुझे प्राप्त होता रहा है। इन्होंने समय-समय पर शोध-कार्य की प्रगति के विषय में पूछकर तथा अपेक्षित समय व अमूल्य परामर्शों को देकर शोध-कार्य में मेरी महती सहायता की है। मैं उनके श्रीचरणों में सविनय प्रणाम करता हूँ।
मैं विभाग के समस्त गुरुजनों का हृदय से कृतज्ञ हूँ, जिन्होंने समय-समय पर आवश्यक परामर्श देकर सतत् मेरा उत्साहवर्धन किया है। विभाग के मानसिंह और नीरज भी धन्यवाद के पात्र हैं, जिन्होंने विभागीय कार्यों में मुझे सहयोग दिया। ___ मैं डॉ. राजेन्द्र कुमार, डॉ. अजय झा, आनन्द कुमार तथा उन सभी अग्रजों तथा मित्रों का भी आभारी हूँ, जिन्होंने प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से मेरे कार्य में सहायता प्रदान की।
दिल्ली विश्वविद्यालय पुस्तकालय, साहित्य अकादमी (दिल्ली) तथा भारतीय पुरातत्त्व पुस्तकालय के कर्मचारी भी इस आभार के पात्र हैं, जिन्होंने यथा सम्भव आवश्यक पुस्तकों को उपलब्ध करवाकर मेरे शोध कार्य में सहयोग किया।
मैं अपने माता जी व पिता जी के प्रति आभार प्रकट कर उऋण नहीं होना चाहता, जिन्होंने सतत् मेरे उत्कर्ष की ही कामना की है। मैं अपने अनुजद्वय का भी ऋणी हूँ जिनका स्नेह ही मेरा उत्साह सम्बल बना रहा। मेरी अर्धांगिनी भी साधुवाद की पात्रा है, जिसने पदे-पदे मेरा उत्साहवर्धन
किया।
(xi)