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तिलकमञ्जरी में औचित्य
__145 महिमा का अनुवर्तन करे, वैसा करें" मेघवाहन का यह कथन विशेष अभिप्राय को प्रकट कर रहा है। इसके वंश में सदैव ऐसे प्रजापालक राजा उत्पन्न हुए हैं, जिन्होंने अपने यश व प्रताप से दिक्-दिगन्तर को प्रकाशित किया है। अतः वैसा अद्वितीय पुत्र उसकी तथा अपने वंश की कीर्ति को निश्चय ही सभी दिशाओं में फैलाएगा। मेघवाहन के इस कथन का अभिप्राय सहृदय-हृदय में नितरां प्रकाशित हो रहा है अत: यहाँ अभिप्रायौचित्य है।
शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए समुद्र यात्रा के प्रसंग में समरकेतु द्वारा उक्त यह वाक्य 'क्लेशोऽपि वरमल्पकालमनुभूतः शरीरेण स्तोको न जीवितावर्धिमनसा महान् शोकः । साभिप्राय तथा तथ्यपरक है। समुद्र यात्रा करते हुए 'दिव्यमंगल ध्वनि' को सुनकर समरकेतु इसके उद्गम स्थल को देखने की इच्छा प्रकट करता है। उसके नाव के कर्णधार तारक की भी यही इच्छा है, परन्तु भयानक जनप्राणियों तथा पर्वत के तटस्थ पत्थरों से दुर्गम समुद्र उसके मनोरथ को शिथिल कर रहा है। इस पर समरकेतु कहता है कि 'शरीर द्वारा अल्पकालिक दुःख सहन करना, हृदय से जीवन पर्यन्त शोक का अनुभव करने से अच्छा है। यह पूर्णतः सत्य है कि मनुष्य समय निकल जाने पर यह चिंतन कर जीवन पर्यन्त दु:खी होता है कि उस समय कुछ कष्ट सहकर कार्य पूर्ण कर लेते तो अच्छा होता। समरकेतु के कथन का अभिप्राय यह है कि इच्छित कार्य को उचित समय पर पूर्ण कर लेना चाहिए अन्यथा मनुष्य को जीवनभर दु:ख व पश्चाताप होता है। समरकेतु का यह कथन वर्तमान समय में भी प्रासंगिक है। यह उन लोगों को शिक्षा देता हैं, जो आज का कार्य कल पर छोड़ देते है।
यथाहमेषामशेषभुवनवन्दितावदातचरितानां चतुरुदधिवेलावधे वसुंधराभुजामखिलदिङमुखविसर्पतोदग्रप्रतापतया तुलितनिजवंशादिपुरुषादित्य यशसामिक्ष्वाकुवंश्यानामवनीमृतां पश्चिमो न भवामि, यथा च देवी मदिरावती जगदेकवीरात्मजप्रसविनीनामस्मत्पूर्वपुरुषमहिषीणां महिमानमनुविधते, तथा विदेहि। ति. म., पृ. 58 वही, पृ. 143 आदानस्य प्रदानस्य कर्त्तव्यस्य च कर्मणः । क्षिप्रमक्रियमाणस्य काल: पिबति तद्रसम् ।। पञ्चतत्रम्
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