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________________ 144 तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य नतमस्तक हो गया। इसका युद्ध कौशल अद्वितीय है। इसका नैतिक चरित्र भी उत्युच्च कोटि का है। यह मन, वचन तथा कर्म में समान व्यवहार करता है। ऐसा पुरुष मित्रता के सर्वथा योग्य है। समरकेतु को हरिवाहन का सच्चा सुहद् बनाने से यह अभिप्राय व्यंजित होता है कि आगे कथा में इसके द्वारा कोई विशेष कार्य सम्पन्न होना है अत: यहाँ अभिप्रायौचित्य है। तिलकमञ्जरी अस्वस्थ होने के कारण अपनी प्रिय सखी मलयसुन्दरी को अपने पास बुलाने के लिए कञ्चुकी को भेजती है। जब मलयसुन्दरी उसकी अस्वस्थता का कारण पूछती है तो चतुरिका उत्तर देती हैअवश्यमखिललोकातिशायिरूपलावण्येन पुण्यपरमाणुनिर्मितोदारवपुषा दिव्यपुरुषेण केनापि दर्शयित्वात्मानमपसृतेन विप्रलब्धेयम् । निश्चय ही रूप लावण्य में अद्वितीय पुण्य शरीर वाले किसी दिव्यपुरुष ने उसका चित्त हर लिया है। उसकी चेष्टाएँ इसी का संकेत कर रही थी। यही उसकी अस्वस्थता का कारण है। यह जानकर मलयसुन्दरी कहती है-"यद्येवमल्पो व्याधिः।" यदि ऐसा है तो यह रोग अल्प ही है। मलयसुन्दरी का यह कथन अभिप्रायोपेत है। शारीरिक व्याधियों के लिए औषधियाँ उपलब्ध है तथा उनसे व्याधि का उपशमन भी हो जाता है, परन्तु प्रिय दर्शन से उत्पन्न कामोत्कण्ठा रूप व्याधि ऐसी व्याधि है, जो प्रिय मिलन से भी शान्त न होकर उत्तरोत्तर और अधिक बढ़ती जाती है। इस व्याधि में व्यक्ति दुःखी होकर भी आनन्द को ही प्राप्त करता है। इस प्रकार मलयसुन्दरी का साभिप्राय यह वचन सहृदय-हृदय को आनन्दित कर देता है अतः यहाँ पर अभिप्रायौचित्य है। सम्राट् मेघवाहन की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी लक्ष्मी उसे दर्शन देकर वर माँगने को कहती है। मेघवाहन अत्यन्त विनम्रता से कहता है -"जिससे मैं जगत् में वन्दित व पवित्र चार समुद्रों से परिवेष्टित पृथ्वी के राजाओं, सभी दिशाओं में प्रसारित उत्कृष्ट प्रताप वाले अपने कुल के प्रथम पुरुष आदित्य के यश से युक्त इक्ष्वाकु वंश के राजाओं में अंतिम व अधम न बनूँ तथा जिससे मदिरावती इस लोक में अद्वितीय वीरों को उत्पन्न करने वाली हमारे पूर्वजों की महारानियों की 33. ति. म., पृ. 355
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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