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________________ तिलकमञ्जरी में औचित्य 143 औचित्य के भेद 1. पद 2. वाक्य 3. प्रबन्धार्थ 4. गुण 5. अलङ्कार 6. रस 7 क्रिया 8. कारक 10. वचन 11. विशेषण 12. उपसर्ग 9. लिङ्ग 13. निपात 14. काल 15. देश 16. कुल 17. व्रत 18. तत्त्व 19. सत्त्व 20. अभिप्राय 21. स्वभाव 22. सारसंग्रह 23. प्रतिभा 24. अवस्था 25. विचार 26. नाम 27. आशीर्वाद तिलकमञ्जरी में औचित्य के लगभग सभी भेदों के उदाहरण प्राप्त होते हैं। क्षेमेन्द्रोक्त औचित्य के कतिपय भेदों के तिलकमञ्जरी से उदाहरण प्रस्तुत है अभिप्रायौचित्य सहृदय को सहजता से काव्य के अभिप्राय का बोधन होना ही अभिप्रायौचित्य है। आचार्य क्षेमेन्द्र के अनुसार सरलता से अभिप्राय को प्रकट करने वाला काव्य, सज्जनों की सरलता के समान सहृदयों के हृदय को आवर्जित कर लेता है।" इसके उदाहरणस्वरूप आचार्य क्षेमेन्द्र ने कवि दीपक रचित पद्य दिया है।" तिलकमञ्जरी में सर्वत्र अभिप्रायौचित्य का सुन्दर निदर्शन प्राप्त होता है। मेघवाहन द्वारा समरकेतु को हरिवाहन का सहचर (मित्र) बनाने में अभिप्रायौचित्य स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। समरकेतु ऐसा वीर युवक है, जिसके समक्ष वीरों में अग्रणी तथा कौशलेन्द्र की चतुरङ्गिणी सेना का सेनापति भी 31. अकदर्थनया सूक्तमभिप्रायसमर्थकम् । चित्तमार्वजयत्येव सतां स्वस्थमिवार्जवम् ।। औ. वि. च., का., 32 32. श्येनाग्रिहदारितोत्तरकरो ज्याङ्कप्रकोष्ठान्तरः आताम्राधरपाणिपादनयनप्रान्तः पृथूरास्थलः । मन्येऽयं द्विजमध्यगोनृपसुतः कोऽप्यम्ब ! निःशम्बल : पुत्र्येव यदि कोष्ठमेतु सुकृतैः प्राप्तो विशेषातिथि : ।। वहीं, पृ. 141
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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