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________________ तिलकमञ्जरी में रस 127 धनपाल ने समरकेतु और वज्रायुध के बीच बाण युद्ध का वर्णन इस कुशलता से किया है कि पाठक को लगता है जैसे यह सबकुछ उसकी आँखों के सामने घटित हो रहा है - वारं वारमन्योन्यकृततर्जनयोश्च तयोराकर्णात्तकृष्टमुक्तास्तुल्यकाल मास्वादितगलामिषाविसारिणो लवितदिशो दूराध्वगाराजकार्योपयोगिनस्तीक्षणः ... महाजवा वाजिनश्चापल्यतोषिताः क्षितिपालदारकाविषमाश्च मण्डलभेदिनः प्राप्तमोक्षादन्तदीर्घनिद्रामहासंनिपातः स्वेच्छाविहारिणः खेचरान्निजस्वभावा लब्धशुद्धयः क्वचिद्वातिका इव सूतमारणोद्यताः, क्वचिद्राजाध्यक्षा इवाकृष्टसुभटग्रामकङ्कटाः, क्वाचिद्वलयकारा इव कल्पितकरिविषाणाः, क्वचित्कितवा इव लिखिताष्टपदसारफलकाः, क्वचित्पतङ्गा इव पक्षपवनान्दोलितदीपिकाखण्डार्चिषोऽभिलषितगजदानामार्गणता मुन्मिषितनीलत्विषो बाणतां द्विधाकृतोद्दण्डपुण्डरीकाः कादम्बाभिधामारावमुखरिताशामुखाः शिलीमुखायिख्यां मुख्यामुद्वहन्तः, सायकाः प्रसनुः । पृ. 89 उत्साहित समरकेतु के बाण प्रक्षेपण प्रसङ्ग को देखिए, जिसमें अत्यधिक वेग से बाण चलाने के कारण उसका हाथ एक ही समय में अनेक स्थानों पर लक्षित हो रहा है अतिवगेव्यापृतोऽस्य तत्र क्षणे प्रोत इव तूणीमुखेषु, लिखित इव मौर्व्याम, उत्कीर्ण इव पुढेषु, अवतंसित इव श्रवणान्ते तुल्यकालमलक्ष्यत वामेतरः पाणिः । पृ. 90 राजकुमार समरकेतु का दक्षिण हस्त अत्यधिक वेग से बाण चलाने के कारण एक ही समय में तुणीर के मुख जड़ा हुआ सा, धनुष की डोरी पर चित्रित हुआ सा, बाण के मुख पर उत्कीर्ण हुआ सा तथा कर्णान्त भाग में अलङ्कार के समान सा लक्षित हुआ दिखाई पड़ रहा था। वज्रायुध के वर्णन में भी वीर रस की अभिव्यञ्जना स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है। रात्रिमध्य में जब वज्रायुध को यह ज्ञात होता है की शत्रु सेना शिविर की ओर आ रही है। तो उत्साहित वज्रायुध को ये वचन अमृत तुल्य लगते हैं। सेनापतिस्तु तत्तयोराकर्ण्य कर्णामृतकल्प जल्पमुपजातहर्षो रणरसोत्कर्षपुण्पत्पुलकजालकः सजलजीमूतस्तनितगम्भीरेण स्वरेण ... अभ्यर्णचरमनुचरगणं रथानयनार्थमादिक्षत्। नचिराच्च तेनान्तिकमुपनीतमुभयतः
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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