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________________ 126 तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य परस्पर एक दूसरे के घात के लिए निबद्ध वज्रायुध और समरकेतु की सेनाओं के मध्य तत्काल ही समस्त जीवलोक को आकुलित करने वाला, रुधिरमय जल की वर्षा करने वाले मेघ के समान अतिभयङ्कर, जहाँ रुधिर पान के लिए प्रसन्न योगिनी के द्वारा राजाओं के कपालों को खोजा जा रहा था ऐसा, वीरता से आकुलित राजाओं के समूह के के युद्ध से प्रकम्पित, .... महाप्रलय के समान युद्ध आरम्भ हो गया। वज्रायुध व समरकेतु की सेनाएँ युद्ध के लिए उत्साहित होकर एक दूसरे के समक्ष आकर खड़ी हो जाती है और महागजों, अश्वों, रथों व धनुष की टङ्कार ध्वनियों से बह्माण्ड कम्पायमान हो जाता है गात्रसंघटरणितघण्टानामरिद्वीपावलोकनक्रोधवितानामिभपतिनां वृंहितेन, प्रतिबलाश्च दर्शनक्षुभितानां च वाजिनां हेषितेन, हर्षोत्तालमूलताडिततुङ्गबद्धरंहसां च स्यन्दनानां चीत्कृतेन, सकोपधानुष्कनिर्दयाच्छोटितद्यानां च वाययष्टीनां टंकृतेन, खरक्षुरप्रदलितदण्डानां च पर्यस्यता रथकेतनानां कटुत्कारेण, निष्ठुरधनुर्यन्त्रनिष्ठ्यूतामुक्तानां च निर्गच्छतां नाराचानां सूत्कारेण, वोगाह्यमानविवशवेतालकोलाहलघनेन च रुधिरापगानां धूत्काकरण प्रतिरसितसंभृतेन, समरभेरीणां भाङ्कारेण, निर्भराध्मातसकलदिक्चक्रवालं यत्र साक्रन्दमिव साट्टहासमिव सास्फोटनरवमिव ब्रह्माण्डमभवत्। पृ.87 ____ परस्पर शरीर के संघर्षण से ध्वनित घण्टा ध्वनि वाले, शत्रुहाथियों के दर्शन से क्रोधित होकर तेज दौड़ने वाले महागजो की गर्जन से, शत्रु सेना के अश्वों के दर्शन से क्षुभित अश्वों की हेषाध्वनि से, उत्साहित सारथियों के वेग से युक्त रथों के चीत्कार शब्द से, क्रुद्ध धनुर्धारियों के धनुष की डोरी के खींचने से उत्पन्न टङ्कार से, दृढ़ धनुषों के द्वारा छोड़े गए बाणों की ध्वनि से, रुधिर नदियों के घूत्कार से (ध्वनि विशेष), संग्राम भेरी की प्रतिध्वनि से पूर्ण भाङ्कार से (ध्वनि विशेष), सभी दिशाओं में अत्यधिक शब्दित ब्रह्माण्ड मण्डल मानों विलाप से युक्त हो गया, मानो महाट्टहास से युक्त हो गया, मानो पर्वतविदीर्ण के समान ध्वनि से युक्त हो गया। __यहाँ पर दोनों की सेनाएँ परस्पर आलम्बन विभाव हैं। युद्ध का वातावरण, युद्ध दुन्दुभि व समरभेरी की आवाजें आदि उद्दीपन विभाव हैं। युद्ध करने के लिए एक दूसरे की और भागना व ललकारना आदि अनुभाव है।
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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