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________________ तिलकमञ्जरी में रस कमलिनीखण्डादेत्य निजयूथान्मसृणमसृणोत्क्षिप्तचरणो रुचिरमूर्तिरेकः शुकशकुनिर विशङ्कितमवादीत्-महाभागे ! किमित्यभाग्येव खेदमुद्वहस्येवम्। एष प्राप्त पक्षिरूपी नभश्चरोऽहम्। आज्ञापय मया यत्कर्त्तव्यम् इत्यभिहिते तेन सभयविस्मया विहस्य चक्षुषा मे वदनमद्राक्षीत्। पृ. 349 हाथी का हरिवाहन को लेकर उड़ जाना भी किसी आश्चर्य से कम नहीं है क्योंकि कोई साधारण हाथी उड़ नहीं सकता - मदान्धः स गन्धवारणः स्कन्धदृढबद्धासनं शासनान्तरमेव साध्वसादाधोरणैरकृतसत्वरोपसर्पणैरनर्पितां कुसुमवशमुद्वहन् मामद्रिगह्वरात्ततो निर्गत्य तेनैव गिरितटेन यथोत्तरप्रकटितजवः ... कियन्तमपि मार्गमगमत्। अन्तरीतेषु च निरन्तरैर्वनततरुस्तम्बैर्विलम्बितेषु सर्वेष्वनुपदिषु लोकेष्वेकेन मार्गवर्तिना विषमपाषाणपटलस्थपुटितावतारेण वनरङ्गिणीश्रोतसा भग्नगमनत्व -रस्तरसान्तरिक्षमुदपतत्। पृ. 243-44 देवी लक्ष्मी द्वारा प्रदत्त दिव्य अंगुलीयक का चमत्कार भी पाठकों को आश्चर्यचकित कर देता है। इस दिव्य अंगुलीयक के प्रभाव से सेनापति वज्रायुध की प्रतिपक्षी समरकेतु की सेना सहसा ही निद्रा में लीन हो जाती है। इसी प्रकार समरकेतु जब देदीप्यमान प्रकाशमण्डल में से निकलते हुए और आकाश मार्ग से आते हुए विद्याधरों को देखता है तो वह पलक झपकना भी भूल जाता है - नातिदूरदरीभृतस्तस्य परिसरात् ... संवर्तकालसंध्यासदृशमत्यद्भुतं प्रभाराशिमपश्यम्। दृष्ट्वा चोपजातकौतुकः किमेतदिति वितर्कयन्नेव तस्मादर्कमण्डलादिव मयूखनिवहमेकहेलया विनिर्गतमागच्छदभिमुखमाकाशमार्गेण ... खेचरनरेन्द्रवृन्दमद्राक्षम् । दृष्ट्वा चाग्रतस्तं प्रभाराशिमत्यन्त- दुरालोकान्तं चापतन्तमाभिमुखं खेचरलोकमुल्लसच्चित्तवृत्तिः प्रवर्तय पुरस्तान्नावमिति नियुज्य तारकं तत्क्षणमेव चलितस्तेन विस्मयस्तिमितचक्षुषा समस्तेनापि गगनचारिणां गणेन 'कोऽयं कुतोऽयं किमर्थमायातः कथमिहातिदुर्गमायां न गोपकण्ठभूमावेकाकी प्रविष्टः क्व यास्यति' इति। पृ. 152-154 24. ति.म., पृ. 91-92
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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