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________________ 120 तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य साक्षात्कार विद्याधर मुनि के वर्णन में होता है। वायुमार्ग से उड़कर आते हुए मुनि को देखकर सम्राट मेघवाहन और महारानी मदिरावती आश्चर्य और कौतुहल से भरकर उठकर खड़े हो जाते हैं - एकदा च राजा याममात्रे वासरे ....... भद्रशालनाम्नो महाप्रसादस्य पृष्ठे समुपविष्टः ... सह तया प्रस्तुतालापः सहसैवान्तरिक्षेण दक्षिणापथादापतन्तम्, उद्योतितसमस्तान्तरिक्षामार्गम्, आपीतसप्तार्णवजलस्य रत्नोद्गारमिव तीव्रोदानवेगनिरस्तमगस्त्यस्य ... विद्याधरमुनिमपश्यत्। दृष्ट्वा च तमदृष्टपूर्वमुपजात कुतूहलो विस्मयस्तिमितदृष्टिरुपरतनिमेषतया दर्शनप्रीत्युषार्जितेन पुण्यराशिना तस्यामेव मूर्तावाविर्भूतदिव्यभाव इव मुहूर्तमराजत। अभिमुखीभूतं च तं प्रसादस्य दिवसकरमिव पौलस्त्यभूधराभिलाषिणं सप्रभातसंध्योवासरः सुदूरविकासितमुखः समं मदिरावत्या प्रत्युज्जगाम। पृ. 23-24 यहाँ विद्याधर मुनि आलम्बन विभाव है। मुनि का तेज उद्दीपन विभाव है। निर्निमेष दृष्टि व स्तम्भन अनुभाव हैं तथा हर्ष और उत्ससुकता सञ्चारी भाव हैं। इसी प्रकार ज्वलनप्रभ नामक वैमानिक स्वर्ग से नंदीश्वर द्वीप जाते हुए मार्ग में अयोध्या नगरी में परमोत्कृष्ट ऋषभदेव के आयतन को देखकर आश्चर्यचकित हो जाता है और देव दर्शनों के लिए कुछ देर के लिए रुक जाता है - हन्तः ! स एष भगवानशेषजगन्नाभिकुलकरकुलालङ्कार कारणं सकललोकव्यवहारसृष्टेः, द्रष्टा कालत्रितयवर्तिनां भावानाम्, उपदेष्टा चिरप्रनष्टस्य धर्मतत्त्वस्य, सर्वसत्त्वनिर्निमित्त-बन्धुः, सेतुबन्धः संसारसिन्धोः, आद्योः धर्म चक्रवर्तिनाम् , आराध्यश्चतुर्विधस्यापि सुरनिकायस्य , नायकः समग्राणां गणधरकेवलिप्रमुखाणां महर्षीणामृषभनामा जिनवृषः, यस्य पुरा स्वामिना शक्रेण स्वयमनुष्ठितः प्रतिष्ठा-विधिः, अवधार्य चैतदधिकोपाजातभक्तिः 'आसतामिहैव मुहूर्तमेकं भवन्तः' इति निवर्त्य पृष्ठानुपातिनः सुरपदातीनतिमात्रमुत्सुको गन्तुमङ्गमात्र एवागतः। दृष्टश्चैषभगवानशेषकल्मषक्षयहेतुरादिदेवः। पृ. 39-40 सम्पूर्ण तिलकमञ्जरी में स्थान-स्थान पर अद्भुत रस का समावेश है। एक शुक जो प्रार्थना करने पर कमलगुप्त के पत्रोत्तर को अपनी चोंच में दबाकर ले जाता है और मनुष्य की वाणी में बोलकर हरिवाहन और मलयसुन्दरी से मनुष्य की वाणी में वार्ता कर न केवल उन्हें अपितु सहृदय पाठक को भी विस्मित कर देता है - 23. ति. म., पृ. 194-195
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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