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________________ 116 तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य जाती है। वह हरिवाहन की पुनः एक झलक पाने के लिए इधर-उधर देखती है, परन्तु उसके दिखाई न देने पर उसके लिए उद्विग्न हो जाती है - विनिर्गत्यैलालतासदनाद्देवी तिलकमञ्जरी ...अवनतमुखी सलज्जेव नातिनेदीयसस्तमालतरुगुलमस्य मूले गतिविलम्बमकृत। स्थित्वा च तस्यान्तरेषु मुहूर्तमपशान्तसंततश्वासपवनोद्गमास्वेदसलिलार्द्रजघनमण्डलासक्तामादरेण निबिडीकृत्य विस्तनीविनिवसनं नियम्य चापरेण वैदग्ध्यशंसिना बन्धविन्यासेन सविलासमीषद्विवृतदोर्मूलपरिणाहाभ्यां बाहुलतिकाभ्याममन्दकुसुमामोदवासितवनानिलं शिथिलतामायातमलिनिकुरुम्बनीलं वालवल्लरी भारम विचलविधृतलोचनालताजालकान्तरेण प्रतीपमवलोकितवती। कृत्वा च क्षणेन जृम्भारम्भानिष्पतद्वष्पबिन्दुक्लिन्नलोचनापाङ्गभङ्ग प्रस्थिता। तदेव चकितचकिता लतालयनमुल्लासितस्तनांशुका च वारंवारमवलोकितकुसुमजालकालीकमेव कुर्वती मार्गलतासु कुसुमावचयमागता द्वारमस्य। स्थित्वा चात्र किंचित्कालमुद्विग्नमानसा तदासन्नवर्तिषु तरुस्तम्बेषु सत्वरा भ्रमितुमारब्धा। क्षणेन चारुह्य तुङ्ग सरस्तीरतटमेकमधिकविस्तारितेक्षणा प्रतिक्षणोदञ्चितमुखी दिङ्मुखानि प्रेक्षितुं प्रवृत्ता। .... नीता च निश्चितप्रकृतिविपर्यासभीतेनानिच्छुरपि गन्तुमन वरतविहिताभ्यर्थनेने स्वस्थानम्। तत्रापि सर्वदा शयनतलगता मुमुक्षुमतिरिव मन्दमप्यनभिनन्दित दिव्यरसपान भो जना, संनिपात विद्वैद्यवाणीव प्रकृष्टतापेऽप्यमनुपदिष्टशिशिरोपचारा, निदाघपरमावस्थेव सहचरीरप्यपश्यन्ती, भीरुपरिषदिव पृष्टाप्यरतिकारणमनोवेदयन्ती, चित्रज्ञमपि गतप्रज्ञ इति सावज्ञमवलोकयन्ती प्रिय भाषिणेऽपि रोषमु द्वहन्ती, केवल यस्तस्मात्सरस्तीरतटवनादागतो यस्तद्गन्ता यस्तदुत्पन्नां वार्तामकथयद्यश्च तद्गमनार्थमुद्यममककारयत्त्मेव परिजनं पार्वे कुर्वती तमेवालपन्ती तस्यैव वचनमवधारयन्ती प्राक्तनमहः स्थिता। पृ. 354-355 उपर्युक्त उद्धरण अभिलाष विप्रलम्भ शृङ्गार का उदाहरण है। यहाँ तिलकमञ्जरी आश्रय है तथा हरिवाहन आलम्बन विभाव है। एलालता मण्डप का वातावरण उद्दीपन विभाव है। हरिवाहन को देखकर शरीर में कम्पन होना, उसके लिए व्याकुलता तथा उद्विग्नता अनुभवा है। लज्जा, मोह, चिन्ता आदि सञ्चारी भाव हैं। अब दोनों के हृदय में प्रेम दीप जल रहा है और दोनों एक-दूसरे से मिलना
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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