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तिलकमञ्जरी के पात्रों का चारित्रिक सौन्दर्य
101 हैं, तब यही उसे आश्वासन देती है कि आपका समरकेतु से अवश्य मिलन
होगा।
यह कथा कुशला भी है। जब मलयसुन्दरी यह सोचकर दु:खी होती है। कि जाने किस प्रकार उसका समरकेतु से मिलन होगा, तब यह अनेक प्रेमी युगलों के अकस्मात् मिलन की कथाएँ सुनाकर उसके सन्ताप को कम करती है।
यह मलयसुन्दरी की सच्ची सखी है। यह उसके दु:ख से दुःखी व उसकी प्रसन्नता से स्वयं को प्रसन्न अनुभव करती है। जब यह वज्रायुध के भय से मलयसुन्दरी को प्राण त्यागने के लिए अशोक वृक्ष से लटकते देखती है, तो इसके प्राण ही सूख जाते है और यह बहुत विलाप करती है। उसे बचाने के लिए पूरा प्रयत्न करती है। उसके मृत्युपाश को काटने के लिए एक राजकुमार को सहायक बनाकर ले आती है। जब मलयसुन्दरी प्रसन्न होकर यह बताती है कि मृत्युपाश काटने वाला राजकुमार ही उसका प्रिय समरकेतु है तो यह अत्यधिक प्रसन्न होती है तथा मलयसुन्दरी का हाथ उसके हाथ में दे देती है। यह प्रत्युत्पन्न मति है। यह मलयसुन्दरी के मुखभावों व चित्तवृत्ति से समझ जाती है कि वह आत्महत्या का प्रयत्न कर सकती हैं। यह परिस्थितियों को रुख भांपकर कार्य करती है।
परिस्थितियों के अनुरूप यह मलयसुन्दरी को वज्रायुध से विवाह करने के लिए समझाती है। परन्तु जब इसे अपने प्रेम की रक्षा के लिए आत्मघात को तत्पर देखती है तो सम्पूर्ण वृत्त उसकी माता गन्धर्वदत्ता को सुनाकर इसका उपकार करती है। अकस्मात् ही राजकुमार समरकेतु के आ जाने पर यह उसे मलयसुन्दरी को रात्रि में ही स्वदेश ले जाने के लिए कहती है। इस प्रकार यह सदैव अपनी सखी मलयसुन्दरी के हितचिन्तन में ही रत दिखाई देती है।
145. भर्तृदारिके ! विदितं मया ते शोक कारणम्। अनाकुलास्स्व। भविष्यत्यवश्यं तव तेन
- नरपतिसूनुना सह समागमप्राप्तिः । ति. म.,पृ. 294 146. वही, पृ. 298 147. वही, पृ. 307-308 148. वही, पृ. 314 149. वही, पृ. 327 150. वही, पृ. 325