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________________ 102 तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य मृगाङ्कलेखा यह तिलकमञ्जरी की प्रिय सखी व दासी है। इसे अन्तःपुर में अत्यधिक सम्मान प्राप्त है। इसे हरिवाहन के प्रति तिलकमञ्जरी के गाढ़ अनुराग का पूर्ण ज्ञान है। जब हरिवाहन तिलकमञ्जरी का अतिथि बनकर रथनूपुरचक्रवाल नगर आता है तो यह बड़े मनोयोग से उसकी सेवा करती है। यह अपनी मीठी बातों और अक्ष क्रीड़ा आदि से उसका मनोरंजन करती है। तरङ्गलेखा यह गन्धर्वदत्ता की बालसखी है। इसे मलयसुन्दरी के साथ उसकी देखभाल के लिए प्रशान्तवैर नामक तपस्वी के आश्रम में भेजा जाता है। चतुरिका पत्रलेखा की दासी है। जिसे वह आश्रमवासिनी मलयसुन्दरी की सेवा में नियुक्त करती है। इस प्रकार धनपाल ने कुशलतापूर्वक पात्रों का चयन कर उनके चारित्रिक सौन्दर्य को सफलतापूर्वक उभारा है। सभी पात्र अपने-अपने कार्य की प्रकृति के अनुरूप गुणों से युक्त हैं। 151. 152. 153. ति.म., पृ. 370-374 वही, पृ. 330 वही, पृ. 344
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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