________________
तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य
100 चित्रलेखा
चित्रलेखा गन्धर्वक की माता है तथा पत्रलेखा और गन्धर्वदत्ता की बाल सखी है। यह पत्रलेखा विश्वासपात्रा है। इसने तिलकमञ्जरी का लालन पालन भी किया है, अतः इसे तिलकमञ्जरी की धात्री होने का गौरव भी प्राप्त है।"
यह चित्रकला में प्रवीण है। जब पत्रलेखा को ज्ञात होता है कि कोई भूलोकवासी राजकुमार ही तिलकमञ्जरी का वरण करेगा, तो पत्रलेखा पृथ्वीवासी राजकुमारों के चित्र बनाने के कार्य में इसे ही नियोजित करती है।”
यह शृङ्गार कार्य में भी निपुण है। महावीर जिन के अभिषेकोत्सव में नृत्य के लिए अपहृत राजकन्याओं का शृङ्गार चित्रलेखा ही करती है। विचित्रवीर्य भी इसके शृङ्गार कार्य की प्रशंसा करता है।'' यह बुद्धिमती भी है। यह अपनी मीठी वाणी से सभी को अपने वश में कर सकती है। विचित्रवीर्य इसके वाक्चातुर्य की भी प्रशंसा करते है। पत्रलेखा की बाल सखी होने के कारण व स्वामिभक्ता होने के कारण इसे विचित्रवीर्य का विश्वास भी प्राप्त है। इसलिए गन्धर्वदत्ता का सम्पूर्ण वृत्तान्त जानने के लिए वह ही इसे नियुक्त करते हैं। 43 बन्धुसुन्दरी बन्धुसुन्दरी मलयसुन्दरी की प्रिय सखी है। मलयसुन्दरी बड़े विश्वास से अपनी सभी बातें इससे करती है। वह समरकेतु के प्रति अपने प्रेम का रहस्योद्घाटन भी इसके समक्ष कर देती है। जब मलयसुन्दरी प्रिय को स्मरण करके व्याकुल होती
137. ति.म., पृ. 170 138. सखि चित्रलेखे ! त्वं हि चित्रकर्मणि परं प्रवीणा .... । वही, पृ. 117 139. वही, पृ. 170 140. वही, पृ. 269 141. चित्रलेखे ! त्वं हि वत्सायाः पत्रलेखायाः परं प्रसादभूमिः प्रधानसैरन्ध्री स्वकर्मकौशलेन
कृत्स्नेऽपि जगति लब्धपताका जानासि विविधाभिर्भङ्गिभिरलंकर्तुमित्यनकशः
श्रुतमस्मामिः । वही, पृ. 267-68 142. वही, पृ. 268 143. वही, पृ. 274 144. वही, पृ0 294