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तिलकमञ्जरी के पात्रों का चारित्रिक सौन्दर्य
इसकी प्रवृत्ति धार्मिक है। यह तिलकमञ्जरी के वर के विषय में जानने के लिए विधिपूर्वक मंत्र जप करके विद्या को देवी को प्रसन्न करती है।33 मदिरावती यह सम्राट मेघवाहन की प्रधान महिषी है और हरिवाहन की माँ है। इसका स्वभाव अत्यंत कोमल और व्यवहार सरल है। यह अत्यन्त रूपमती थी। इसके अंग-प्रत्यंगों की शोभा बहुत आकर्षक थी। इसकी स्वाभाविक कोमलता, बुद्धिमता व सौन्दर्य के कारण मेघवाहन का इस पर अत्यधिक स्नेह है। मेघवाहन सदैव इसे अपने हृदय की बातों से अवगत कराते हैं। मदिरावती पतिव्रता नारी है तथा अपने पति मेघवाहन के लिए इसके हृदय में अगाध प्रेम है। जब मेघवाहन इसे पुत्रप्राप्ति के लिए वन में जाकर तपस्या करने के अपने निश्चय से अवगत कराते हैं तो यह सम्भावित वियोग की कल्पना करके ही रोने लगती जाती है और स्वयं भी वन में साथ जाने की हठ करने लगती है।
__यह अपने पति की बात को सर्वाधिक महत्त्व देती है। जब इसे यह ज्ञात होता है कि मेघवाहन ने समरकेतु को हरिवाहन का परम विश्वसनीय सहचर व मित्र बना दिया है तो यह समरकेतु को भी पुत्रवत् स्नेह देती है।
धार्मिक कार्यों को संपादित करने में यह सदैव तत्पर रहती है। अपने पति के धार्मिक कार्यों में पूर्ण सहयोग करती है। पुत्र प्राप्ति हेतु देवाराधन में मेघवाहन का सहयोग करने का संकल्प प्रकट करती है। विद्याधर मुनि के आने पर पूर्ण श्रद्धा से उनका स्वागत करती है तथा उनके बैठने के लिए, अपने उत्तरीय से धूलकणों को साफ करके स्वयं ही सुवर्णासन लाती है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि इसका व्यक्तित्व व कार्य, इसके पद की गरीमा के अनुरूप ही हैं।
133. ति.म., पृ. 169 134. आढ्यश्रोणि दरिद्रमध्यसरणि स्रस्तांसमुच्चस्तनं
नीरन्ध्रालकमच्छगण्डफलक छेकुभ्र मुग्धेक्षणम् । शालीनस्मितमस्मिताञ्चितपदन्यासं विभर्ति स्म या।
स्वादिष्टोक्तिनिषेकमेकविकसल्लवण्यपुण्यं वपुः ।। वही, पृ. 23 135 वही, पृ. 29 136. स्वयं समुपनीते सुराज्या दूरदर्शितादरया मदिरावत्या निजोत्तरीयपल्लवेन प्रमृष्टरजसि
हेमविष्टरे न्यवेशयत्। वही, पृ. 25