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________________ 98 तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य आश्रम के कुलपति ने इसे अपनी पुत्री के समान पाला तथा विवाह योग्य होने पर काञ्चीनरेश कुसुमशेखर के साथ इसका विवाह कर दिया। इसे अपने माता-पिता से अगाध प्रेम हैं। उनसे बिछड़ जाने के बाद वह निरंतर उनको स्मरण करती है। इसे इस बात की बहुत चिंता है कि वह इस जन्म में अपने माता-पिता से मिल भी पाएगी या नहीं। महायश नामक महर्षि के दर्शन करके यह अपने माता-पिता से पुर्नमिलन के विषय में पूछती है।28 यह स्वभाव से ही धार्मिक है। ऋषि-मुनियों के वचनों पर श्रद्धा रखती है। जब इसे ज्ञात होता है कि त्रिकालदर्शी महर्षि आये हैं तो यह उनके दर्शनों के लिए वहाँ जाती है। पत्रलेखा : यह विद्याधर चक्रवर्ती सम्राट् चक्रसेन की पटरानी तथा तिलकमञ्जरी की माता है। तिलकमञ्जरी के पुरुष विद्वेषी स्वभाव व विवाह ने करने के उसके निश्चय से यह सदैव चिंतित रहती है। जब इसे ज्ञात होता है कि इसका विवाह किसी भूतलवासी राजकुमार से होगा, तो यह इस आशा से सुन्दर राजकुमारों के चित्र बनवाती है कि संभवतः इसे कोई राजकुमार पसंद आ जाये।” गन्धर्वदत्ता इसकी अनुजा है। जब इसे ज्ञात होता है कि मलयसुन्दरी गन्धर्वदत्ता की पुत्री है, तो यह बहुत प्रसन्न होती है, और उसे स्नेहपूर्वक घर चलने को कहती है। मलयसुन्दरी के मना करने पर यह उसके वहीं रहने की व्यवस्था कर देती है तथा परिचर्चा के लिए एक दासी को भी नियुक्त कर देती है।" इसे चित्रलेखा पर अत्यधिक विश्वास है। अपने विशेष कार्यों में यह चित्रलेखा को ही सौंपती है। 127. अवर्धयच्चापत्यबुद्धया बद्धपक्षपातः। प्रतिदिवसमासादितोद्दामयौवनां च कदाचिद्दष्टुमागताय गोत्रे सकलदक्षिणापथस्य पार्थिवाय ख्यातमहसे कुसुमशेखराभिख्याय प्रायच्छत। ति.म., पृ. 343 128. वही, पृ. 272 129. दर्शय निसर्गसुन्दराकृतीनामवनिगोचरनरेन्द्र प्रदारकाणा यथास्वमङ्कितानि नामभिर्यथवस्थितानि विद्धरूपाणि। ...... एवमपि कृते कदाचित्क्वापि विश्राम्यति चक्षुरस्याः । वही, पृ. 170 130. आरब्धदेवार्चनावस्थित्वा चिरमावासगमनाय मां पुनः पुनरतत्वरत्। वही; पृ. 344 131. वही; पृ. 344 132. वही; पृ. 170
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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