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तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य और पक्षियों से विदा लेने जाती है। अतिथियों के लिए भी इसके हृदय में सम्मानजनक स्थान है। नितान्त अपरिचित जनों को भी यह सम्मान की दृष्टि से देखती है। जिनायतन में राजकुमार हरिवाहन को देखकर यह उसका स्वागत करती है तथा अपने आश्रम में ले जाकर अतिथि सत्कारोचित क्रियाएँ करती है। यह अपने अतिथि का इतना सम्मान करती है, कि पूछे जाने पर अपना सारा वृत्तान्त उसे सुना देती है। आदर्श प्रेमिका : यह आदर्श प्रेमिका भी है। समुद्र में नाव पर सवार राजकुमार समरकेतु के आकर्षक व्यक्तित्व को देखकर प्रथम बार में ही उसके प्रेम पाश में बंध जाती है तथा उसी क्षण उसे अपने जीवनसाथी के रूप में स्वीकार कर लेती है। इसका प्रेम इतनी उच्चकोटि का है, कि जब समरकेतु उसे अपने समक्ष न पाकर आत्मघात के लिए समुद्र में कूद पड़ता है तो यह भी उसके पीछे ही समुद्र में कूद पड़ती है। अपने हृदय में समरकेतु को स्थान देने के पश्चात् यह किसी अन्य पुरुष के वरण की कल्पना भी नहीं करती। वज्रायुध से विवाह करने के स्थान पर यह अपने प्रेम की रक्षा के लिए प्राण त्यागना अधिक उचित समझती है
और मृत्युपाश बनाकर अशोक वृक्ष से लटक जाती है।” समरकेतु अकस्मात् ही वहाँ पहुँचकर इसके मृत्युपाश को काटकर इसके प्राणों की रक्षा करता है। अपने प्रियतम को पुनः देखकर यह बहुत हर्षित होती है। इसके प्रेम वृत्तान्त को जानकर इसके पिता इसे वज्रायुध से बचाने के लिए एक आश्रम भेज देते है। एक दिन किसी ब्रह्मचारी के मुख से यह जानकर कि शत्रुसेना के द्वारा समरकेतु व उसकी सेना दीर्घनिद्रा में सुला दी गई है,” यह भी आत्मघात करने समुद्र की ओर चल पड़ती है। किन्तु तरङ्गलेखा द्वारा पीछा किए जाने पर यह किंपाक नामक वृक्ष 112. ति.म., पृ. 301-302 113. वही, पृ. 256 114. वही, पृ. 259-345 115. अङ्गीकृतश्चायं नायकः। किंतु तिष्ठतु तावद्यावदहमिहस्था।
स्वस्थानमुपगता तु काञ्चीमध्यमागतं गृहीष्याम्येनम् .......। वही, पृ. 288 116. वही; पृ. 292 117. वही; पृ. 306 118. वही, पृ. 325 119. वही; पृ. 331 120. वही; पृ. 333